Husn Shayari | महबूब की तारीफ शायरी
खूबसूरती की तारीफ शायरी | बेहतरीन रोमांटिक शायरी
ग़ज़ल
सज संवर कर चल दिए गुलफाम कहाँ?
आज करोगे जाकर क़त्लेआम कहाँ?
सज संवर कर चल दिए गुलफाम कहाँ?
आज करोगे जाकर क़त्लेआम कहाँ?
आपकी आहट पर ही तो खुल जाता है,
रस्ता मेरे दिल का वरना आम कहाँ?
सारी दुनिया देखी मैंने ऐ हमदम!
तेरे शहर के जैसी सुबहो शाम कहाँ?
प्यार तुझे तो सब ही करते हैं लेकिन,
प्यार में तेरे हम जैसा बदनाम कहाँ?
हुस्न की तेरे कीमत मेरे इश्क़ से है,
इश्क़ का मेरे बतला दे तू दाम कहाँ?
तेरी ज़ुल्फ़ों में ही उलझना बेहतर है,
तेरी ज़ुल्फ़ों जैसा है गुलदाम कहाँ?
छान लिये मय खाने सारी दुनिया के,
तेरे नैनो जैसा छलका जाम कहाँ?
घर से बाहर हम ने आकर देख लिया,
"घर से बाहर घर जैसा आराम कहाँ?"
इश्क़ तो अब भी करते हैं सब ऐ फ़राज़!
खून ए जिगर से लिखते है अब नाम कहाँ?
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ पीपलसाना मोरदाबाद उत्तर प्रदेश
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गुलदाम : फूलों का पिंजरा
गुलफाम : माशूक़
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