ईद पर शायरी - ईद मुबारक शेर ओ शायरी
मिल रही है तू एक साल के बाद
ईद आई है एक साल के बाद
नामालूम
ईद का चाँद तुम ने देख लिया
चाँद की ईद हो गई होगी
इदरीस आज़ाद
मुस्कुराओ कि ईद हो जाए
गुनगुनाओ के ईद हो जाए
हनीफ दानिश इंदौरी
ईद का दिन है गले आज तो मिल ले ज़ालिम
रस्म-ए-दुनिया भी है मौक़ा भी है दस्तूर भी है
क़मर बदायुनी
आ जाए वो मिलने तो मुझे ईद-मुबारक
मत आए ब-हर-हाल उसे ईद-मुबारक
इदरीस बाबर
तुझ को मेरी न मुझे तेरी ख़बर जाएगी
ईद अब के भी दबे पाँव गुज़र जाएगी
ज़फ़र इक़बाल
ईद हो जाए अभी तालिब-ए-दीदारों को
खोल दो ज़ुल्फ़ से गर चाँद से रुख़्सारों को
तनवीर देहलवी
तुम बिन चाँद न देख सका टूट गई उम्मीद
बिन दर्पन बिन नैन के कैसे मनाएँ ईद
बेकल उत्साही
हम ने तुझे देखा नहीं क्या ईद मनाएँ
जिस ने तुझे देखा हो उसे ईद मुबारक
लियाक़त अली आसिम
माह-ए-नौ देखने तुम छत पे न जाना हरगिज़
शहर में ईद की तारीख़ बदल जाएगी
जलील निज़ामी
जिस तरफ़ तू है उधर होंगी सभी की नज़रें
ईद के चाँद का दीदार बहाना ही सही
अमजद इस्लाम अमजद
ईद आई तुम न आए क्या मज़ा है ईद का
ईद ही तो नाम है इक दूसरे की दीद का
अज्ञात
अब ईद भी मना रहे हैं काफ़िलो में लोग
किसने मेरी भी कौम में अंगार छोड़ दी
एजाज शेख
अहबाब पूछते हैं बड़ी सादगी के साथ
तू अब के साल ईद मनाएगा किस तरह
पं.गोपाल तिवारी अज्ञात
फ़लक पे चाँद सितारे निकलते हैं हर शब
सितम यही है निकलता नहीं हमारा चाँद
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
देखा हिलाल-ए-ईद तो आया तेरा ख़याल
वो आसमाँ का चाँद है तू मेरा चाँद है
अज्ञात
आज मैं ईद मनाऊँ तो मनाऊँ कैसे
तुझ को सीने से लगाऊँ तो लगाऊँ कैसे
सलाहुद्दीन अय्यूब
अब दिन तुम्हारे, वक्त तुम्हारा, तुम्हारी ईद
बेटी ! तुम्हारी ईद से है अब हमारी ईद
हफीज़ जालंधरी
मिल के होती थी कभी ईद भी दीवाली भी
अब ये हालत है कि डर डर के गले मिलते हैं
अज्ञात
उस से मिलना तो उसे ईद-मुबारक कहना
ये भी कहना कि मिरी ईद मुबारक कर दे
दिलावर अली आज़र
ऐ हवा तू ही उसे ईद-मुबारक कहियो
और कहियो कि कोई याद किया करता है
त्रिपुरारि
आज सारे हिज़ाब उठने दो,
दिल फ़िगारों की ईद आई है !
अख्तर शीरानी
जो लोग गुज़रते हैं मुसलसल रह-ए-दिल से
दिन ईद का उन को हो मुबारक तह-ए-दिल से
ओबैद आज़म आज़मी
कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होती
हम को अगर मयस्सर जानाँ की दीद होती
ग़ुलाम भीक नैरंग
ईद का दिन है सो कमरे में पड़ा हूँ 'असलम'
अपने दरवाज़े को बाहर से मुक़फ़्फ़ल कर के
असलम कोलसरी
माह-ए-नौ देखने तुम छत पे न जाना हरगिज़
शहर में ईद की तारीख़ बदल जाएगी
जलील निज़ामी
उस मेहरबाँ नज़र की इनायत का शुक्रिया
तोहफ़ा दिया है ईद पे हम को जुदाई का
अज्ञात
ईद के बाद वो मिलने के लिए आए हैं
ईद का चाँद नज़र आने लगा ईद के बा'द
अज्ञात
ईद अब के भी गई यूँही किसी ने न कहा
कि तिरे यार को हम तुझ से मिला देते हैं
मसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
वादों ही पे हर रोज़ मिरी जान न टालो
है ईद का दिन अब तो गले हम को लगा लो
मसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शहर ख़ाली है किसे ईद मुबारक कहिए
चल दिए छोड़ के मक्का भी मदीना वाले
अख़्तर उस्मान
देखा हिलाल-ए-ईद तो तुम याद आ गए
इस महवियत में ईद हमारी गुज़र गई
अज्ञात
आज यारों को मुबारक हो कि सुब्ह-ए-ईद है
राग है मय है चमन है दिलरुबा है दीद है
शाह मुबारक आबरू
ईद तू आ के मिरे जी को जलावे अफ़्सोस
जिस के आने की ख़ुशी हो वो न आवे अफ़्सोस
मसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
महक उठी है फ़ज़ा पैरहन की ख़ुशबू से
चमन दिलों का खिलाने को ईद आई है
मोहम्मद असदुल्लाह
है ईद का दिन आज तो लग जाओ गले से
जाते हो कहाँ जान मिरी आ के मुक़ाबिल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ईद का दिन तो है मगर 'जाफ़र'
मैं अकेले तो हँस नहीं सकता
जाफ़र साहनी
हासिल उस मह-लक़ा की दीद नहीं
ईद है और हम को ईद नहीं
बेखुद बदायुनी
ईद का चाँद जो देखा तो तमन्ना लिपटी
उन से तक़रीब-ए-मुलाक़ात का रिश्ता निकला
रहमत क़रनी
तू आए तो मुझ को भी
ईद का चाँद दिखाई दे
हरबंस सिंह तसव्वुर
अबरू का इशारा किया तुम ने तो हुई ईद
ऐ जान यही है मह-ए-शव्वाल हमारा
हातिम अली मेहर
किसी की याद मनाने में ईद गुज़रेगी
सो शहर-ए-दिल में बहुत दूर तक उदासी है
इसहाक़ विरदग
आई ईद व दिल में नहीं कुछ हवा-ए-ईद
ऐ काश मेरे पास तू आता बजाए ईद
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
रास आ जातीं हमें भी ईद की ख़ुशियाँ तमाम
काश तू भी पास होता ईद के लम्हात में
अज्ञात
ईद का दिन है गले मिल लीजे
इख़्तिलाफ़ात हटा कर रखिए
अब्दुल सलाम बंगलौरी
ईद में ईद हुई ऐश का सामाँ देखा
देख कर चाँद जो मुँह आप का ऐ जाँ देखा
शाद अज़ीमाबादी
लैलतुल-क़द्र है हर शब उसे हर रोज़ है ईद
जिस ने मय-ख़ाने में माह-ए-रमज़ाँ देखा है
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
आप इधर आए उधर दीन और ईमान गए
ईद का चाँद नज़र आया तो रमज़ान गए
शुजा ख़ावर
वहाँ ईद क्या वहाँ दीद क्या
जहाँ चाँद रात न आई हो
शारिक़ कैफ़ी
ईद को भी वो नहीं मिलते हैं मुझ से न मिलें
इक बरस दिन की मुलाक़ात है ये भी न सही
शोला अलीगढ़ी
इक झलक तेरी जो पाई होगी
चांद ने ईद मनाई होगी
अंजुम लुधियानवी
है ईद मय-कदे को चलो देखता है कौन
शहद ओ शकर पे टूट पड़े रोज़ा-दार आज
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
जहाँ न अपने अज़ीज़ों की दीद होती है
ज़मीन-ए-हिज्र पे भी कोई ईद होती है
ऐन ताबिश
इक बार मुबारक तुम्हें सौ बार मुबारक
हाँ, ईद के इस चाँद का दीदार मुबारक
गणेश गायकवाड़
आज से पहले तो ऐसा न खिला ईद का चाँद
ज़ख़्म के फूल, लहू संज फ़ज़ा, ईद का चाँद
मुमताज़ अज़ीज़ नाज़ा
ईद पर मसरूर हैं दोनों मियाँ बीवी बहुत
इक ख़रीदारी से पहले इक ख़रीदारी के बाद
सरफ़राज़ शाहिद
ख़ुद तो आया नहीं और ईद चली आई है
ईद के रोज़ मुझे यूँ न सताए कोई
अज्ञात
मैं अपने आप से रहता हूँ दूर ईद के दिन
इक अजनबी सा तकल्लुफ़ नए लिबास में है
इदरीस आज़ाद
छुप गया ईद का चाँद निकल कर देर हुई पर जाने क्यों
नज़रें अब तक टिकी हुई हैं मस्जिद के मीनारों पर
शायर जमाली
क्या लुत्फ़-ए-ईद है जो अगर तुम से दूर हों
गुज़रेगा रोज़-ए-ईद तसव्वुर में आप के
अज्ञात
कई फ़ाक़ों में ईद आई है
आज तू हो तो जान हम-आग़ोश
ताबाँ अब्दुल हई
अगर हयात है देखेंगे एक दिन दीदार
कि माह-ए-ईद भी आख़िर है इन महीनों में
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
कुछ देर उस ने देख लिया चाँद की तरफ़
कुछ देर आज चाँद को इतराना चाहिए
अक़ील नोमानी
इश्क़-ए-मिज़्गाँ में हज़ारों ने गले कटवाए
ईद-ए-क़ुर्बां में जो वो ले के छुरी बैठ गया
शाद लखनवी
मेरी तो पोर पोर में ख़ुश्बू सी बस गई
उस पर तिरा ख़याल है और चाँद-रात है
वसी शाह
जब आया ईद का दिन घर में बेबसी की तरह
तो मेरे फूल से बच्चों ने मुझ को घेर लिया
बिस्मिल साबरी
इस बार चाँद ईद का आया हिज़ाब में
उस पर भी यह सितम कि गले दूर से मिलें
राहत बरेलवी
मुझ को तो ईद में भी फ़राग़त कहाँ मिली
लड़ती रही है सास सवेरे से शाम तक
साजिद सजनी लखनवी
वो सुब्ह-ए-ईद का मंज़र तिरे तसव्वुर में
वो दिल में आ के अदा तेरे मुस्कुराने की
फ़ानी बदायुनी
बादबाँ नाज़ से लहरा के चली बाद-ए-मुराद
कारवाँ ईद मना क़ाफ़िला-सालार आया
जोश मलीहाबादी
इस से अब बढ़के ख़ुशी और क्या होती मुझको
मेरे दुश्मन ने कहा ईद मुबारक तुझको
असद निज़ामी
ख़ुशी है सब को रोज़-ए-ईद की याँ
हुए हैं मिल के बाहम आश्ना ख़ुश
मीर मोहम्मदी बेदार
आप ने ईद मुबारक तो कहा है लेकिन
आप ने ईद मनाने की इजाज़त नहीं दी
महवर सिरसिवी
रहना पल पल ध्यान में
मिलना ईद के ईद में
हसन शाहनवाज़ ज़ैदी
वादा-ए-वस्ल दिया ईद की शब हम को सनम
और तुम जा के हुए शीर-ओ-शकर और कहीं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मय पी के ईद कीजिए गुज़रा मह-ए-सियाम
तस्बीह रखिए साग़र-ओ-मीना उठाइए
वज़ीर अली सबा लखनवी
निकले हैं घर से देखने को लोग माह-ए-ईद
और देखते हैं अबरू-ए-ख़मदार की तरफ़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
मह-जबीं ईद में अंगुश्त-नुमा क्यूँ न रहें
ईद का चाँद ही अंगुश्त-नुमा होता है
सफ़ी औरंगाबादी
छेड़ा है एक नग़्मा-ए-शीरीं भी कू-ब-कू
दिल ने हिलाल-ए-ईद की ताईद के लिए
अफ़रोज़ रिज़वी
तुम्हारे इश्क़-ए-अबरू में हिलाल-ए-ईद की सूरत
हज़ारों उँगलियाँ उट्ठीं जिधर से हो के हम निकले
किशन कुमार वक़ार
ईद है हम ने भी जाना कि न होती गर ईद
मय-फ़रोश आज दर-ए-मय-कदा क्यूँ वा करता
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
क्या ख़बर है हम से महजूरों की उन को रोज़-ए-ईद
जो गले मिल कर बहम सर्फ़-ए-मुबारकबाद हैं
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
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