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बंद दरवाजे़ पर दस्तक– दरवाजे पर शायरी Sad Shayari

दरवाजे पर शायरी | दरवाजे पर दस्तक शायरी

बंद दरवाजे़ पर दस्तक
बंद दरवाज़े पर दस्तक
जरा भी नहीं सुहाती है
अंदर की बात बाहर से
समझ में नहीं आती है
लगा कान दरवाजे से
गर नहीं कुछ सुना है
जानते हैं हम- मगर
घर नहीं रहा कभी सूना है
बंद दरवाज़े पर दस्तक दी-
आवाज कुछ आनी है
सुराखों से पार हो मौत-
गहरी नींद सुला जानी है
गंदी हवा(MP)कहा इसको-
कँपा शांत कर ले जाना है
कोरोना की हवा में उड़ान,
कहर-मातम बरपाना है
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किसने कहा?
मौत की राह
बंद दरवादे से थम जाती है
तय किया क़ायनात का-
किसिकी एक न चल पाती है
दस्तक देना अगर तो
बा-शु'ऊर बनके हीं देना है
खोलदे अगर दरवाजा तो
नासाज़ नहीं करना है
मौत का यह शिलशिला
आजका नहीं- बहुत पूराना है
नया नहीं, लाख सदी पहले
सुना जहां का- फ़साना है
है सब वही,
भले बदला हुआ लगता-
यह जमाना है
मौत है इक शातीर सौदागर-
बार बार इसको आना है
'दिल की बात' दिल में
नहीं जब्द कर- मन घुटाना है
देहरी पर गर खड़ी हो
मौत भी जीवट को मुस्कराना है
आज नहीं तो कल सभों को
ओझल हो जाना है
दस्तक की आहट सुन
कर भी नहीं धबड़ाना है
नेह की चादर में लिपट
चुपचाप सिमट राह पे जाना है
मेहरबान रहे मालिक,
नाम लम्हा-लम्हा गुनगुनाना है
डॉ. कवि कुमार निर्मल

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