घर परिवार अपनत्व की, आन-बान-शान है पिता।
हिम से ऊंचा, जीवनरूपी रथ का पहिया है पिता।।
क्षमा करआगे बढ़ने का हर अवसर देता है पिता।
इच्छा रूपी स्वाद को, चखने का ज़रिया है पिता।।
हिम से ऊंचा, जीवनरूपी रथ का पहिया है पिता।।
क्षमा करआगे बढ़ने का हर अवसर देता है पिता।
इच्छा रूपी स्वाद को, चखने का ज़रिया है पिता।।
पिता के लिए अनमोल वचन - पिताजी के लिए स्टेटस - पिता दिवस शायरी
अराधना
पिता
घर परिवार अपनत्व की, आन-बान-शान है पिता।
हिम से ऊंचा, जीवनरूपी रथ का पहिया है पिता।।
क्षमा करआगे बढ़ने का हर अवसर देता है पिता।
इच्छा रूपी स्वाद को, चखने का ज़रिया है पिता।।
भाईचारा, प्यार की एक सच्चीपाठशाला है पिता।
बचपन रुपी खेलों की सुगम कार्यशाला है पिता।।
कितना भी हो, घोर अंधेरा दीपक सी लौ है पिता।
नजर-टोटकों-करतूतों, की औषध डोरी है पिता।।
थका - हारा भी, कमजोर नहीं दिखाता है पिता।
धन्य हो जाते है हम ,जब खुशी लुटाता है पिता।।
कुछ नहीं खाया, कहकर खुद खिलाता है पिता।
सचमानें तो ईश्वर का दूसरा ही अवतार है पिता।।
कितनी ही डगर कठिन हो, सुलभ रास्ता है पिता।
जीवन की नैया मेंअसली तश्वीर सजाता है पिता।।
कितनी भी हो सर्दी, गर्मी रक्षाका कवच है पिता।
कर्मपथ के भूमण्डल में कुदरत का रुप है पिता।।
भला कर भला होगा, संस्कार सिखाता है पिता।
हो कितनी भी मजबूरी, मान की चौखट है पिता।।
मुसीबत से छुटकारा, खुशी की सौगात है पिता।
इस तपस्या का सही में, सच्चा हकदार हैं पिता।।
रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा(राज.)
पिता
घर परिवार अपनत्व की, आन-बान-शान है पिता।
हिम से ऊंचा, जीवनरूपी रथ का पहिया है पिता।।
क्षमा करआगे बढ़ने का हर अवसर देता है पिता।
इच्छा रूपी स्वाद को, चखने का ज़रिया है पिता।।
भाईचारा, प्यार की एक सच्चीपाठशाला है पिता।
बचपन रुपी खेलों की सुगम कार्यशाला है पिता।।
कितना भी हो, घोर अंधेरा दीपक सी लौ है पिता।
नजर-टोटकों-करतूतों, की औषध डोरी है पिता।।
थका - हारा भी, कमजोर नहीं दिखाता है पिता।
धन्य हो जाते है हम ,जब खुशी लुटाता है पिता।।
कुछ नहीं खाया, कहकर खुद खिलाता है पिता।
सचमानें तो ईश्वर का दूसरा ही अवतार है पिता।।
कितनी ही डगर कठिन हो, सुलभ रास्ता है पिता।
जीवन की नैया मेंअसली तश्वीर सजाता है पिता।।
कितनी भी हो सर्दी, गर्मी रक्षाका कवच है पिता।
कर्मपथ के भूमण्डल में कुदरत का रुप है पिता।।
भला कर भला होगा, संस्कार सिखाता है पिता।
हो कितनी भी मजबूरी, मान की चौखट है पिता।।
मुसीबत से छुटकारा, खुशी की सौगात है पिता।
इस तपस्या का सही में, सच्चा हकदार हैं पिता।।
रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा(राज.)
प्यारे-प्यारे पापा: पिता दिवस पर कविता - Poem On Father's Day 2021
पिता
पापा मेरे पापा
प्यारे-प्यारे पापा
तुमसे ही है हमारी खुशी
नहीं करेंगे आपको दुःखी
हमेशा चलना संग
नहीं करेंगे कभी तंग
रहे चेहरें में हमेशा मुस्कान
यही दुआ दिन रात करेंगे
पापा मेरे पापा
प्यारे- प्यारे पापा।।
अर्पणा दुबे अनूपपुर
विश्व पिता दिवस पर कविता - International Father's Day दिनांक -20/06/2021
विषय- पिता
धरा पर ईश्वर का
रूप हैं मेरे पिता।
बरगद की गहरी
छांव जैसे हैं,
मेरे पिता।
धरा पर ईश्वर का
रूप हैं मेरे पिता।
बरगद की गहरी
छांव जैसे हैं,
मेरे पिता।
हर घर में होता है
वो इंसान जिसे हम
पापा कहते हैं।
बच्चों संग मित्र
बन खेलते।
संकट में पतवार
बन खड़े होते,
आश्रय स्थल जैसे हैं,
मेरे पिता।
गमों की भीड़ में
हंसना सिखाते और
अपने दम पर
तूफानों से लड़ना
सिखाते।
तुम किसी के
आगे झुकना नहीं
ये सिखलाते मेरे पिता।
उम्मीद और आस
की पहचान,
परिवार की हिम्मत
और विश्वास है,
मेरे पिता।
रजनी वर्मा
भोपाल
कविता - पापा तेरे नाम की - पापा के लिए शायरी - Papa Shayari
पापा तेरे नाम की–
पूरी दुनिया में परचम लहराऊ पापा तेरे नाम की।
अब मत कहना पापाजी है बेटियाँ किस काम की।
जो भी अधूरे ख्वाब तेरे अब तक हुए ना पूरे है
फिर मैं वजह बन जाऊँगी बस उसी मुकाम की।
सर दर्दो से तड़प उठते जब भी प्यारे पापा जी
एक दिन की ना शिकायत थी ये सुबह-शाम की।
जिस दिन प्यारी हाथों से सर सहलाती थी बेटियाँ
उस दिन नही पड़ती जरूरत फिर ये झंडू बाम की।
जब दवा भी बेअसर हुए फिर जख्म गहराते गए
उस वक्त बस बेटियों की दुआओं ने ही काम की।
अब मत कहो कि बोझ बेटी ये मेरे दुनिया वालों
हो नही सकती 'पूनम' लायक कभी बदनाम की।
पूनम यादव
वैशाली (बिहार )
पापा के लिए दो लाइन शायरी पिता दिवस शायरी - Fathers Day Shayari In Hindi
रख दिया छांव में हमको और खुद जलते रहे!
हमने देखा है इक फ़रिश्ता अपने पिता के रूप में!
आज हम जो भी हैं जहाँ भी हैं और जो भी थोड़ा बहुत बेहतर कर पा रहा हूँ उसमें सिर्फ हमारे पिता जी के संस्कार , आशीर्वाद और प्यार का योगदान है।
उन्होंने हमेशा सिखाया है कि किसी का बुरा न करो और न ही किसी का दिल दुखाओ, उनकी दी गई शिक्षा और ज्ञान हमारे लिए अनमोल रत्न के समान है।
उनका आशीर्वाद हमेशा हमारे ऊपर बना रहे।
पितृ-दिवस पर दोहे - पिता दिवस पर दोहा - पिता के लिए दोहे
हमारे स्व पिता श्री प्रेमपाल वार्ष्णेय जी के साथ
संसार के पिताओं को समर्पित दोहे।
दोहे में पिता
उपकारों के तात का,नहीं और औ छोर।
पिता - पुत्र के बीच - सा,कहीं न मिलती डोर।।
पिता - पुत्र के बीच - सा,कहीं न मिलती डोर।।
खिला -खिला कर गोद में, करते हमको प्यार।
पूरी ख्वाहिश कर सभी, करते खूब दुलार।।
बनकर घोड़ा खेलते, बच्चों से हर हाल।
भर के गागर प्रेम की, बचपन करें निहाल।।
पालक जीवनक्रम के, करते सारे काम।
पग चलना सीखा प्रथम,पिता - अँगुलियों थाम।।
नहीं ककहरा याद जब, रटवायें हर बार।
जीवन - गुरु बनकर सदा, देते सीख हजार।।
गीता, वेद पुराण सम, देय गूढ़ नित ज्ञान।
ठोस बनाया ' आज' को, फिर भावी सौपान।।
भरी पिता की बात में, मधु सम मधुर मिठास।
प्रेम - कलश रीते नहीँ, भरें खुशी 'औ' हास।।
इबादत, पिता की करो ! वे हमरे भगवान।
धुरी - कुटम्बी आप हो, घर का चक्र महान।।
लिए ईश के रूप वे, भू पर सद्गुण खान।
स्वाभिमान घर -बार के, तुम से सकल जहांन।।
चमके मुख पर तेज ज्यों, हो पूर्णिमा - प्रकाश।
शिक्षित कर संतान को, भरे ज्ञान आकाश।।
दिल - दर्पण टूटे जभी, बाँधे ढाढस - डोर।
अंधे घेरों में उगे, सुखद चमकती भोर।।
डॉ मंजु गुप्ता
वाशी, नवी मुंबई
पिता का दर्द पर कविता - पिता पुत्री शायरी
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