गुरु तेग बहादुर पर शायरी | गुरु तेग बहादुर पर कविता Poem On Guru Teg Bahadur
पापी औरंगजेब की थी दिल्ली में सरकार
मचा रखी थी उसने हर तरफ हाहाकार
ऐसे मुश्किल समय में आए गुरु तेग बहादुर जी
हिंद की चादर बन कर बचा लिए हम सबके प्रणा
गुरु तेग बहादुर जी हैं हमारे सच्चे रक्षक
दुनिया में बन कर आएं थे धर्म के शिक्षक
हम सब लेते हैं गुरु तेग बहादुर जी से दिक्षा
इन्होंने दी हम सबको जीवन जीने की शिक्षा
सदा रहेगा गुरु तेग बहादुर से हम सबको प्यार
इन्हीं से चलता है धर्म का संसार
गुरु तेग बहादुर जी की शहादत पर कविता | शहीदी दिवस पर शायरी
सिक्खों के नवें गुरु तेगबहादुर था जिनका नाम।
सच्चे वैरागी परम त्यागी धर्म की रक्षा उनका काम
कठोर साधना से उन्होंने किया बड़ा कमाल।
बाबा बकाला में करते रहें तपस्या सालों साल,
भ्रमण किया प्रयाग, बनारस, पटना असम,
किया अध्यात्म का प्रचार करते रहें समागम
शीश गंज, रकाब गंज दिलाते स्मरण आज।
आदर्शो की रक्षा हेतु किये जन्म भर काज।
धर्म के सम्मान में झुकने दिया न शीश अपना
कटा दिया सिर आपना और हो गए वह शहीद।
धर्म के नाम पर मर मिटे याद करें जब नाम।
तेग बहादुर जी को देते हैं हम-सब सम्मान।
हिन्द दी चादर गुरु त्यागमल बचपन का नाम
आज शहादत दिवस है उनका
आओ शान से ले लो उनका नाम।
गुरु तेग बहादुर सिंह पर कविता Guru Teg Bahadur Ji Poem In Hindi
बाते करते है लोग यहा
जीते-मरते रहे लोग यहा
निज प्राण दिया परमारथ मे
है धर्मवीर कोई और कहा
गुरुओं का मान रखा जिसने
इस हिन्द की शान रखी जिसने
निज मोह के छोह को त्याग दिया
स्वाभिमान का ज्ञान दिया जिसने
बालक के मुख पर तेज़ अपार
दुश्मन भी बैठे थे तैयार
पर गुरु-पिता की सीख थी सग
और तेज बड़ी उसकी तलवार
समय के साथ बढ़ा बालक
ली विद्या और बना पालक
सहृदय, प्रेम, त्याग बलिदान
थे गुण उसमे ये विद्यमान
तब देश में था बड़ा अत्याचार
पापी ने मचाई थी हाहाकार
कहता था बदल लो ईमान अगर
जीने का मिलेगा तब अधिकार
इससे बढ़कर भी थे कई दुःख
थे लोग भी धर्म से बड़े विमुख
थी नशाखोरी, दुखी था समाज
गुरु-ज्ञान से राह दिखी सम्मुख
बढ़ने लगा हद से जो दुराचार
सृष्टि में निकट थी प्रलय साकार
चिंतित समाज पहुंचा गुरुधाम
मुख से निकला फिर त्राहि-माम
ज्ञानवान, व्यवहार कुशल
देख कष्ट जनों के वह थे विकल
बलिदान की ठानी उन ऋषि ने
देख अत्याचार हुए विह्वल
बालक उनका भी वीर ही था
देख धर्म दशा वो अधीर भी था
कहा, राष्ट्र को देखो पितृ मेरे
तब आँख में सबके नीर ही था.
विधर्मी को गढ़ में चुनौती दिया
दिया ‘शीश’ व धर्म की रक्षा किया
जगे लोग तभी, बने वीर सभी
बलिदान के अर्थ को साध लिया
हो रहा है धर्म का आज अनादर
आते हो याद फिर राष्ट्र को सादर
ले पुनर्जन्म आओ पुण्यात्मा
एक बार बनो फिर ‘हिन्द की चादर’
सवेरे गुरु घर अरदास करन लई : गुरु तेग बहादुर जी पर कविता
सवेरे गुरु घर अरदास करन लई,
जदों तुसी 'शीश' झुकाया सी,
बागी ने मौका पाके अपना खंजर,
तुहाडी गर्दन ते चलाया सी,
ते जदों अकबर लगया अपने
अल्लाह दी 'इबादत' करन लई,
वीर महाराणा प्रताप ने भी
'मौका'ओ ही पाया सी,
जदों चलोण लगया ओह ,
तलवार अकबर दी गर्दन ते,
माँ दी दीती संस्कारी सीख ने,
अपना हाथ अग्गे अड़ाया सी,
पुत्त शेर मावाँ दे, नहींयों,
पीठ पीछे वार करदे,
आही सोच महाराणा प्रताप ने,
तलवार अपनी 'मयान' विच पाया सी।
रचनाकार : गार्गी वर्षा
जहाँ गुरु का शीश गिरा था शीशगंज गुरुद्वारे में : गुरु तेग बहादुर पर कविता
हमने कितने दाग लगाए सम्मानों की पगड़ी पर।
सारे पुरूस्कार छोड़े है बलिदानों की पगड़ी पर।
थोड़ी सी आबादी हैं पर सुविधा सारी न मांगी।
आरक्षण की बैसाखी भी जिसने कभी नहीं मांगी।
जो सप्ताह के सातों दिन बस मेहनत की खाता हैं।
चाहे कोई ढाबा खोले या ट्रक चलाता हैं।
उन्हें सताने वाले लोगों मैं कहता धिक्कार तुम्हे।
मुर्ख कहने वाले लोगों मैं कहता धिक्कार तुम्हे।
आज चलों बलिदानी पगड़ी की बाते बतलाता हूँ।
सिख धर्म के बलिदान की सारी कथा बताता हूँ।
सिक्खों के एहसान हैं इतने कैसे कलम चलांऊगा।
सातों सागर स्याही कर दूर फिर भी लिख न पाउंगा
जिन बेटों ने बलिदानी इतिहास बनाकर डाल दिया।
उन बेटों को बस हमने उपहास बनाकर डाल दिया।
गुरु नानक ने पगड़ी सौपी देश धर्म की रक्षा हो।
दूर हटे पाखंडवाद यहाँ जन जन की रक्षा हो।
Guru Teg Bahadur Hind Di Chadar Poem In Hindi
गुरु तेगबहादुर को मिलने कुछ कश्मीरी आए थे।
मुस्लिम अत्याचारों से वे सारे ही घबराएँ थे।
कश्मीरी बोले परेशान है गुरूजी दहशतगर्दी से।
मुस्लिम सबकों बना रहा औरंगजेब नामर्दी से।
सोचा गुरु ने और कहा भारी कीमत चुकानी हैं।
भारत देश मांग रहा इस समय बड़ी क़ुरबानी हैं।
सब शेरो से बोलों कि अब हाथों में हथियार रखे।
और पिता से बोलो बेटो की अर्थी तैयार रखे।
धन दौलत और सारी संपदा देश धर्म के नाम करे।
माओं से बोलों कि अब निज बेटों का दान करे।
एक पतंगा गुरु के दिल के भीतर तक चला गया।
हुए रोगटे खड़े गुरु के हाथ कृपाण पे चला गया।
पीकर गुस्सा तेग बहादुर हो गये मौन।
लम्बी सांस खीचकर बोले बड़ी कुर्बानी देगा कौन।
बात हुई ऐसी कुछ उस दिन, धरती अम्बर डौल गये।
नौ साल के गुरु गोविन्द जी सबके सम्मुख बोल गये।
कहा पिताजी उस शव पर भारत की नीव खड़ी होगी।
औरंगजेब से आप लड़ो कुर्बानी बहुत बड़ी होगी।
मैं अब भी शीश झुकाता हूँ उस दिल्ली के गलियारे में।
जहाँ गुरु का शीश गिरा था शीशगंज गुरुद्वारे में।
श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहादत पर कविता
धर्म रक्षा में शीश देकर अडिग रहे राष्ट्र स्वाभिमान को,
ऐसे क्रांतिकारी युग पुरुष को सत सत नमन में करती हूं,
14 वर्स आयु में मुगलो को धूल चटाया है,
गुरु तेग बहादुर को शीश झुककर वंदन करती हूं,
आज चलो बलिदानी पगड़ी की बात बताती हु,
सिख धर्म के बलिदानो की कथा सुनाती हु,
सिख के है कीतने एहसान कैसे कलम चलाऊंगी,
सात सागर को सयाही करदु फिर भी ना लिख पाऊँगी,
जिन बेटो ने बलिदानी ऐतिहास बना डाला था,
उन बेटो को हमने उपहास बना दिया,
गुरु नानक ने पगड़ी सौपी देश धर्म की रक्षा को,
बन्ध करो पाखण्ड, जान धन की यहाँ रक्षा हो,
गुरु तेग बहादुर से मिलने कुछ कश्मीरी पंडित आये थे,
मुस्लिम अत्याचारो से सभी घबराये थे,
मुस्लिम सबको बना रहा औरंगजेब ना मर्दी से,
रोंगटे खड़े हो गए,हाथ कृपाण पर पहुच गया,
सांस खीचकर बोले बड़ी कुर्बानी देगा कौन,
बात ऐसी हुइ उस दिन धरती अम्बर बोल गए,
9 साल के गुरु गोविंद जी सबके सामने बोल गए,
कहा पिताजी उस शव पर भारत की नींव खड़ी होगी,
औरगजेब से आप लड़ो क़ुरबानी बहुत बड़ी होगी,
औरो के लिए हर जुर्म सहते गए मगर अड़े रहे,
डर कर औरंगजेब ने उनका शीश कलम कर दिया,
उनकी शहादत ने सबके दिलों में हिम्मत जगा दिए,
कभी मत झुकने देना गुरु के सम्मान को,
में अब भी शीश झुकाती हु,उस दिल्ली के गलियारों में,
जहाँ गुरु का शीश गिरा था, शीशगंज गुरूद्वारे में।
गुरू तेग बहादुर से सम्बंधित कविताएं Poems About Guru Teg Bahadur Ji in Hindi
1. चौपई
तिलक जंञू राखा प्रभ ता का ॥
कीनो बडो कलू मह साका ॥
साधन हेति इती जिनि करी ॥
सीसु दिया पर सी न उचरी ॥१३॥
धरम हेति साका जिनि किया ॥
सीसु दिया पर सिररु न दिया ॥
नाटक चेटक कीए कुकाजा ॥
प्रभ लोगन कह आवत लाजा ॥१४॥
Poem On Guru Teg Bahadur Ji In Hindi
दोहरा
ठीकरि फोरि दिलीसि सिरि प्रभ पुरि कीया पयान ॥
तेग बहादर सी क्र्या करी न किनहूं आन ॥१५॥
तेग बहादर के चलत भयो जगत को सोक ॥
है है है सभ जग भयो जै जै जै सुर लोकि ॥१६॥
Guru Teg Bahadur Par Kavita
2. बांह जिन्हां दी पकड़ीऐ
बांह जिन्हां दी पकड़ीऐ
सिर दीजै बांह न छोड़ीऐ।
तेग बहादर बोल्या
धर पईए धरम न छोड़ीऐ।
गुरु तेग बहादुर पर कविता हिंदी में
3. हुन किस थीं आप छुपाईदा
किधरे चोर हो किधरे काज़ी हो, किते मम्बर ते बह वाअज़ी हो,
किते तेग़ बहादर ग़ाज़ी हो, आपे आपना कटक चढईदा।
हुन किस थीं आप छुपाईदा।
(बाबा बुल्ले शाह)
Short Poem On Guru Teg Bahadur Ji In Hindi
4. चांदनी चौंक दिल्ली विच्च अंत समां
रात बीती दिन चढ़ प्या हुन कहरां वाला।
सूरज ख़ूनी निकलया, सूरत बिकराला।
कीता वेस अकाश ने अज काला काला।
धौल धरम तों डोल्या आया भुच्चाला।
स्री सतिगुर इशनान कर लिव प्रभ विच लाई।
जपुजी साहिब उचार्या विच सीतलाई।
पाठ मुकाय अकाल दा जद धौन झुकाई।
कातल ने उस वेलड़े तलवार चलाई।
कम्बन लग्गी प्रिथवी ना दुक्ख सहारे।
शाही वरती गगन ते अर टुट्टे तारे।
अंध हनेरी झुलदी दिल्ली विचकारे।
मातम सारे वरत्या इस दुख दे मारे।
धरमी हिक्कां पाटियां छायआ अंधयारा।
अक्खां विचों निकली लोहू दी धारा।
होन लग्गा संसार विच, वड हाहा कारा।
होया विच अकाश दे, जै जै जैकारा।
हिन्दू धरम नूं रख ल्या, हो के कुरबान।
बली चढ़ा के आपनी रख लीती आन।
पाई मुरदा कौम विच, मुड़ के जिन्द जान।
गुरू नानक दा बूटड़ा चढ़आ परवान।
इक पयारे सिख ने जा सीस उठाया।
लै के विच अनन्द पुर ओवें पहुंचाया।
धड़ लै के इक लुबानड़े ससकार कराया।
सिर तलियां ते रख के इह सिदक कमाया।
सतिगुर रच्छक हिन्द दे, कीता उपकार।
साका कीता कलू विच सिर अपना वार।
दिल्ली दे विच आप दी है यादसुगार।
सीस गंज रकाब गंज लगदे ने दरबार।
(इक पयारे सिख=भाई जैता जी, इक
लुबानड़े=लक्खी शाह लुबाणा)
Guru Teg Bahadur Poem In Hindi
5. सिखया
हे मन मुक्खीं रुझ्झ्या, उट्ठ झाती मार।
अपने रखक गुरू दे उपकार चितार।
किस खातर उह तुर गए सन जिन्दां वार ?
असीं किवें अलमसत हां उह धरम विसार।
दीनां दी प्रितपाल हित सन धाम लुटाए।
परुपकार दे वासते, सरबंस गवाए।
दुखियां दे दुख कट्टने हित सीस कटाए।
पर तूं हाय अक्रितघन, गुन सरब भुलाए।
अपसवारथ दे वासते, हां पाप कमांदे।
दुखिया दर्दी वेख के कुझ तरस ना खांदे।
रोगी दी दारी विखे, इक पल ना लांदे।
लीकां वड वडेरियां छड्ड, औझड़ जांदे।
अगे दे वी वासते कुझ खरची बन्न्हों।
आखी वड वडेर्यां, दी दिल दे मन्नों।
आन जमां जद घेर्या फड़ खड़्या कन्नों।
ओदों नाल तुरेगी इह माई धन्नों।
(कविता ४,५=लाला धनी राम चात्रिक)
Guru Teg Bahadur Ji Poem In Hindi
6. कुर्बानी दा सूरज
घनघोर घटा है कहरां दी,
बिजली है तेग़ जलादां दी।
प्या गड़ा ज़ुलम दा वर्हदा है,
मर रही खेती फ़र्यादां दी।
दिल्ली दे दुखदे दिल अन्दर,
अज्ज पीड़ अनोखी हो रही है।
जरवाने खिड़ खिड़ हसदे ने,
पर दिल्ली दिल तों रो रही है।
औह चौंक चांदनी विच वेखो !
केही झाकी नज़रीं आउंदी है।
जद रब्ब दी ख़लकत रोंदी है,
तद इक मूरत मुसकाउंदी है।
इस सोहनी मोहनी मूरत ने,
केहा सोहना आसन लायआ ए।
अज्ज चौंक चांदनी विच आ के,
इस चानन सिदक जगायआ ए।
है वद्ध अडोल हिमाला तों,
बेफ़िकर ध्यान लगा बैठी।
इउं जापे, पीड़ा दुखियां दी,
है दर्द वंडाउन आ बैठी।
तक्क तक्क के दुनियां कहिन्दी है,
'सूरज' है इह 'कुरबानी' दा।
अज सोहना लाड़ा बण्या है,
सिदकी 'पड़पोता' भानी दा'।
कुरबानी लाड़ी वरन लई,
इह सोहना बण बण बहिन्दा है।
चौगिरदे खड़े जलादां नूं,
फुल्ल वाङू खिड़ खिड़ कहिन्दा है:-
'अज्ज जंञू ख़ूनी तेग़ां दा,
मैं अपने गल विच पावांगा।
पर जंञू कई दुख्यारां दे,
मैं टुट्ट के आप बचावांगा।
पोता हां दादी गंगा दा,
करनी मैं 'जेही कमा जानी।
सी सिरों वगाई शिव जी ने,
मैं गल्यों गंग वगा जानी।
जेरा हां बाबे अरजन दा,
तेगा हां 'तेगां वाले' दा।
अज्ज चौंक चांदनी अन्दर मैं,
करना है कंम उजाले दा।
इह तेग़ ज़ुलम दी फेर गले,
मैं खुंढी करके सुट्ट जानी।
खा स्ट्ट मेरी कुरबानी दी,
हो टोटे टोटे टुट्ट जानी।
मेरी शाह रग ते फिरदे ही,
खंजर दा मूंह मुड़ जावेगा।
मेरी इस रत्त दी धारा विच,
इह तखत ताज रुढ़ जावेगा।
मैं जंञू आपनी आंदर दा,
पंडत नूं पा के जावांगा।
भारत तखते दे मुरदे नूं,
मैं तखत उत्ते बिठलावांगा।
मेरे लई व्याह दी वेदी है,
तेरे लई इह तलवारां हन।
हारां विच मेरियां जित्तां हन,
जित्तां विच तेरियां हारां हन।'
'लौ ! तेग़ ज़ुलम दी चल गई औह,
औह वग पई धारा लाल जेही।'
वक्ख सिर ने धड़ तों हुन्दयां ई,
तुक 'केती छुटी नाल' कही।
गुरु तेग बहादुर पर कविता हिंदी में
7. सच्चा मलाह
दुखियां दा दिल इहनूं जग्ग सारा आखदा ए,
गंगा जलों वद्ध 'गंगा माता' नूं इह भायआ है।
जिन्हे इद्ही नौकरी दी टोकरी है सिर चुक्की,
उहदे सिर उत्ते इन्हे छत्तर झुलायआ है।
करमां दी रेख उहदी पलां विच्च मेसी गई,
मत्था जिन्हे एस दी दलीज ते घसायआ है।
इहदे अग्गे न्युंके जो चल्ल्या प्रेम नाल,
उहने सारे शाहां पातशाहां नूं निवायआ है।
एहदा नाम सुन जम कानें वांङ कम्बदा ए,
मोढा डाह के जग्ग इन्हे डुब्बदा बचायआ है।
साईं वस्स ग्या आ के उहदे रोम रोम विच्च,
'गुजरी दा साईं' जिन्हें रिदे चि वसायआ है।
चरनां दी धूड़ इद्ही निसचे दे नाल लै के,
सुरमा बना के जिस अक्खियां 'चि पा लई।
छौड़ उहदे लत्थ गए दूई वाले इक्को वार,
एकता दी जोत उहने दिल चि जगा लई।
इहदे दरबार दियां करे परदखणां जो,
'वाट' उन्हे इथे ही 'चुरासी' दी मुका लई।
आतमा दी मैल उहदी लत्थ गई पलां विच्च,
इहदी अक्ख विच्च जिन्हे टुभी आ के ला लई।
सानूं जिस चुक्क चुक्क लीता गोद आपनी चि,
उहो दसमेश एस गोदी चि खिडायआ है।
'गंगा' जल वारदी ए उहदी चरन धूड़ उतों,
गंगा मां दा लाडला इह जिस ने ध्याया है।
इद्हे बूहे विच्चों जेढ़ा लंघ आया नेहचे नाल,
उहदे लई जूनां वाला बूहा बन्द हो ग्या।
एद्हे नाल छोहआ लोहआ पारस दा रूप होया,
'पसली शैतान दी' तों 'हाथी दन्द हो ग्या'।
'झाड़ू बरदार' जेहड़ा इद्हे दरबार होया,
'ताजदार हो ग्या' ते उह अनन्द हो ग्या।
जेहड़ा अक्खां एहदियां दा तारा बण ग्या आके,
सारे संसार लई उहो चन्द हो ग्या।
जिन्हे एहदे लंगर दे मांजे जूठे भांडे बह के,
लाह लाह के मैल उस मन लिशकायआ है।
नौवें निद्धां उस दे दवारे दआं गोलियां ने,
नौवां गुरू जिस जिस रिदे चि वसायआ है।
जिन्हे जिन्हे प्रेम पायआ गुजरी दे साईं नाल,
रब्ब नाल जाणों है प्रेम उस पा ल्या।
उहदे लई रेहा ना बिगाना कोई जग्ग उत्ते,
चन्द मीरी पीरी दे नूं जिन्हे अपना ल्या।
तुट्ठ प्या पोता गुरू अरजन दा जिस उत्ते,
उहने पक्की जान लौ कि रब्ब नूं ही पा ल्या।
जिस ने वसायआ नैणीं नौवां गुरू नेहचे नाल,
उस ने निगाह विच रब्ब नूं बिठा ल्या।
जिस ने ध्याया कंत गुजरी दा प्रेम रक्ख,
ओहने 'हर थावें' हरी नाम नूं ध्याया ए।
'तीर' जेहड़ा एस दे दवारे उत्ते चल आया,
कदे जम उस दे ना साहमने वी आया ए।
Guru Teg Bahadur Par Kavita
8. लुबाने दी अरजोई
दीन दयाल गुरू, बहुड़ो उपकार करो।
फस्या मंझधार मिरा, बेड़ा अज पार करो।
आस है आप दी ही, टेक है आपदी ही।
बने हो मलाह जग दे. मेरा वी उधार करो।
दुख दे पहाड़ पए, आण लुबाने उत्ते।
तरस करो मेहर करो, हौला इह भार करो।
रुढ़ रही रास पिता, डुब रेहा अध विच अज्ज बेड़ा।
आन के पार करो, भगत दी कार करो।
बणियां ने बणीए उत्ते, आपदी ओट लई।
प्रेम दे पातशाह जी, प्रेम ब्यापार करो।
इक सौ इक मोहर दयां आपदी भेट पिता।
वंझ आ लायो कोई, होर ना इंतज़ार करो।
Short Poem On Guru Teg Bahadur Ji In Hindi
9. शरधालू लुबाने दा संसा
दिला ! भेट आपनी चढ़ावांगा अज्ज मैं।
ओनूं सीस आपना निवावांगा अज्ज मैं।
गदेले लगा के इह बैठ ने बाई।
किनूं आपना गुरू बणावांगा अज्ज मैं।
एह सारे गुरू ने बने बैठे एथे।
किवें सच्चे सतगुर नूं पावांगा अज्ज मैं।
की मेरा मलाह मिलेगा ना अज्ज मैनूं ?
की दरशन तों खाली ही जावांगा अज मैं।
हच्छा जेहड़ा मंगेगा अज्ज भेट पूरी।
जानी जान उस नूं मनावांगा अज्ज मैं।
Guru Teg Bahadur Poem In Hindi
10. गुरू लाधो रे
दए लुबाना सिक्ख दुहाई, करीं पछान संगते।
मैनूं लभ्भ प्या सतगुर सच्चा, जानी जान संगते।
एसे मुझ ते करम कमायआ, मेरा बेड़ा बन्ने लायआ।
मेरे सुन लए तरले हाड़े, रख्या मान संगते।
इह है सच्चा सतिगुर प्यारा, करदा दुनियां दा निसतारा।
आया डुबदे रुढ़दे बेड़े, बन्ने लान संगते।
गुझ्झी गल्ल अज्ज है खुल्ही, ऐवें भटक ना थां थां भुली।
ऐह तक बैठा ई गुर सोढी, शाह सुलतान संगते।
पाया पूर भेद लुबाणे, इह गुर सभ दे दिल दियां जाने।
बाई मंजियां वाले ठग्ग ने, लुट लुट खान संगते।
Guru Teg Bahadur Hind Di Chadar Poem In Hindi
11. दर्द-कहानी मर्द-कहानी
उह साद-मुरादी सूरत सी,
उस प्रीत-समाधी लाई सी।
भोरे विच्च छब्बी साल उन्हें,
बह जीवन-जोत जगाई सी।
लोकां लई 'तेग़ा कमला' सी,
उस दी पर सूझ स्यानी सी।
उस कोमल-चित्त दी कहन्दे ने,
बाणां तों वद्ध के बानी सी।
मसती विच्च रह के मसत सदा,
उहले हो समां लंघांदा सी।
सोचां विच्च डुब्ब्या रहन्दा सी,
पर डुब्बदे सदा बचांदा सी।
परलो तक्क रल के कलमां ने,
ओसे दी महमा गानी है।
सज्जनो ! उह दर्द-कहानी है,
मितरो ! उह मर्द-कहानी है।
उस पाटे दिल दर-आयां दे,
पलकां विच्च चुक्क चुक्क सीते सी।
उस डुल्हदे हंझू चुंम चुंम के,
रो रो के सांझे कीते सी।
उस बांह फड़ी जिस डिग्गदे दी,
जीउंदे की ? मर के छोड़ी ना।
ला प्रीत नाल मज़लूमां दे,
डर ज़ुलमों मौतों तोड़ी ना।
उह चन्न, चाननी करनी दी,
बह दिल्ली विच्च खिलार ग्या।
उह डुब्ब शाह-रग दी रत्त अन्दर,
डुब्बदी होई भारत तार ग्या।
उस मसत बकाले वाले दी,
ना महमा जग्ग ने जानी है।
सज्जनो ! उह दर्द-कहानी है,
मितरो ! उह मर्द-कहानी है।
उस केसर लै के शाह-रग 'चों,
हस्स तिलक लगायआ पंडत नूं।
उस सूतर वट्या आंदर दा,
उस जंञू पायआ पंडत नूं।
उह लड़्या बिन हथ्यारां तों,
पर ज़ुलमीं तेग़ां तोड़ ग्या।
उह गून्द लगा मिझ्झ चरबी दी,
टुट्टे होए रिशते जोड़ ग्या।
प्रन करके घर तों टुर्या सी,
सिर गांदा गांदा वार ग्या।
पत्थरां दे हंझू फुट्ट निकले,
जिन्द उह मुसकांदा वार ग्या।
जीउना जां मरना दुनियां 'ते,
इक खेड जेही जिस जानी है।
उसदी इह दर्द-कहानी है,
उसदी इह मर्द-कहानी है।
तप तप के तेग़े कमले तों,
जद तेग़ बहादर बण्या उह।
दिल भर के दिल्ली पहुंच ग्या,
हस्स हिन्द दी चादर बण्या उह।
ओसे दे लहू दी लाली है,
अज्ज भारत दियां बहारां 'ते.
ओसे दी रत्त दी रंगन है,
कशमीर दियां गुलज़ारां 'ते।
चन्न रातीं उस दे मन्दर 'ते,
ताहीएं तां चौरी करदा है।
तारे तक्क उस नूं जीउंदे ने,
सूरज वी उस 'ते मर्दा है।
जिस चौक चांदनी विच्च बह के,
तलवारां दी छां मानी है।
उसदी इह दर्द-कहानी है,
उसदी इह मर्द-कहानी है।
श्री गुरु तेग बहादुर जी की कविता
12. तेग़ बहादर
हरगोबिन्द गुरू दे पुत्तर
तेग़ बहादर प्यारे।
माता साहिब नानकी जी दे,
रौशन अक्खी तारे।
ज्युं कसतूरी नाफे विचों
ख़ुशबू पई खिलारे।
उमर निक्की विच, गुरूआं वाले
लच्छन चमके सारे।
मात पिता ने लाल पुत्तर दे
दरशन जिस पल पाए।
ख़ुशियां दे विच्च मोतियां वाले,
भर भर बुक्क लुटाए।
डुल्ह डुल्ह पैंदी छापे विच्चों
ज्युं डल्हक प्यारे नग दी।
लाट 'उतारां वाली वेखी
मसतक अन्दर जगदी।
धरमी रण विच्च पुत्त प्यारा
पूरा जोधा डिट्ठा।
रख दित्ता तां 'तेग़ बहादर'
नाम प्यारा मिट्ठा।
13. दुक्खां दा पंध
उदम करके उट्ठ बहीं हुण,
मेरी कलम प्यारी।
वाट दुरेडी वेला थोढ़ा,
तूं भी तुरनों हारी।
संगी साथी नाल ना कोई,
पैंडा दर्दां वाला।
मंज़ल औखी, कट्टे सौखी,
सोच कोई उपराला आ जा दोवें राही रलके
गल्लां करदे जाईए।
नाले प्रेम वधौंदे जाईए,
नाले वाट मुकाईए :-
पर गल्लां भी दर्दां दे विच्च
भरियां 'जहियां होवन।
बे किरकां दे हिरदे सुन सुण,
हंझू हार परोवन।
ख़ुशियां वाली गल्ल नूं हर कोई,
दुनियां अन्दर भाखे।
भिनख पवे जे किधरों उहदी,
'जी आयां नूं' आखे।
(पर)-दर्दां वाले छापे वल्लों
पल्ले सभ समेटन।
अक्खां मीटन, नज़र ना आवे,
सुणके कन्न्ह वल्हेटन।
दुक्खां दी गल्ल सुणने वाला,
विरला लभ्भे कोई।
सच्च पुच्छें तां दुनियां अन्दर,
दुखियां नूं नहीं ढोई।
पर सुखियां दी पहुंच न ओथे,
जित्थे दुखीए जावन।
मार दुगाड़ा हहुके वाला,
आपा अरश पहुंचावन।
सुख ख़ुशी एह दुनियां अन्दर,
हैन नगूने लाहे।
दर्द परेम बिना ना ढोई,
मिलदी धुर दरगाहे।
बात सुना के दर्दां वाली,
अरशीं झात पवावां।
मेरी पयारी आ अज तेरा
जीवन सफल करावां।
कुदरत वांगूं वेखीं सभ कुझ
मुक्खों मूल ना बोलीं।
सबर सिदक ते ज़ुलम जबर नूं
दिल दे कंडे तोलीं।
फुल्लां नूं ते सूलां अन्दर
डिट्ठा ई लक्ख वारी आ अज तैनूं होर वखावां
खोल्ह ओद्ही करतारी।
फुल्लां अन्दर बूटे उग्गे,
लालां दे विच पत्थर।
बादशाहां दी झोली अन्दर,
देख ज़ुलम दे सत्थर।
दूजे पासे दे वल वेखीं
रब दे ख़ास प्यारे।
रात हनेरी अन्दर करदे
झिल मिल झिल मिल तारे।
कीकर दुक्ख हज़ारां सहिन्दे
धरमों मूल ना डोलन।
सीस कटावन, खल्ल लुहावण,
भेद ना ओद्हा खोल्हन।
मुद्दा की अज आ नी तैनूं
ऐसी गल्ल सुणावां।
पंध दिल्ली दा दर्द दिली विच,
तेरा कुल्ल मुकावां।
किस्सा इक्क शहीदी वाला
खोल्ह सुणावां तैनूं।
रहिन्दी दुनियां तीकर तूं भी,
याद करेंगी मैनूं।
ऐसे ख़ून पवित्तर वाले
तैनूं दरस करावां।
दरस कराके रब्बी रंगण
तैनूं 'जही चढ़ावां।
जेढ़े राहों तूं इक वारी,
लंघें कलम प्यारी।
खिड़न हकीकी बूटे ओथे,
फुट्टे केसर क्यारी।
14. कुर्बानी
चन्नो नौवीं सी चाननी रात ऐपर
ओहदा रोग सी निरा विजोगणां दा।
गोरे मुक्ख ते इसतर्हां जरदियां सन
हुन्दा रंग ए जिस तर्हां रोगना दा।
खुल्हे होए सन रिशमां दे केस बग्गे,
बद्धा होया सी सन्दला सोगना दा।
मत्थे शुक्र ब्रहसपत नूं वेखके ते
हुन्दा प्या सी भरम कलजोगना दा।
दर्दवन्दां दे कालजे पच्छदी सी
चाघड़ हत्थड़े ख़ुशी पै होंवदे सन।
निंम्ही वा तरेल पई डिग्गदी सी,
फुल्ल हस्सदे ते तारे रोंवदे सन।
दौलत दर्द दी खिलरी पुल्लरी ओह
कट्ठी कीती मैं बड़े अनन्द अन्दर।
अदब नाल मैं पहुंच्या सीस परने
माछी वाड़े दे कदी सां पंध अन्दर।
दो लाल सिर-हिन्द दे चुने वेखे,
लिशकां मारदे कदी सरहिन्द अन्दर।
चन्दू चन्दरे दी लोह याद आ गई
जदों वेख्या उत्हां मैं चन्द अन्दर।
निकली चन्द दे सीन्यों रिशम ऐसी
आ गई सिक्ख इतहास दा इलम बणके।
मैनूं दिल्ली दा शहर दिखा दित्ता।
ओहने ढाई सै वरहे दा फ़िलम बणके।
डिट्ठा पिंजरा लोहे दा इक्क बण्या
जीहदे विच भी सन सूए जड़े होए।
ओहदे विच इक्क रब्बी उतार वेखे
बुलबुल वांग बेदोसे ही फड़े होए।
सीखां तिक्खियां वाड़ सी कंड्यां दी
फुल्ल वांग विचकार सन खड़े होए।
चींघां खुभ्भियां ते रगड़ां छिल्ल दित्ते,
हत्थ पैर विच्च बेड़ियां कड़े होए।
रोम दाढ़े पवित्त्र दे खिल्लरे ओह,
किरनां चमकियां होईआं अकाश अन्दर।
हैसी ओस प्रदेसी दा हाल एदां,
जिवें सूरज होवे तुला रास अन्दर।
उट्ठन लग्ग्यां रब्ब दी याद अन्दर
सूए साम्हने सीने नूं वज्जदे सन।
वज्ज वज्ज के भुरभुरी सूल वांगूं
फट्टां डूंघ्यां विच्च ही भज्जदे सन।
काले बिसियर पहाड़ां दे आए होए,
डंग मारदे मूल न रज्जदे सन।
पहरेदार बी धूड़ के लून ज़ालम,
उत्तों वहिन्दियां रत्तां नूं कज्जदे सन।
फ़तह सिंघ ने जिन्हां नूं नाल लैके,
फ़तह पाई सी मुलक आसाम उत्ते।
घेरा प्या सी सैंकड़े सूलियां दा,
अज ओसे मनसूर वरयाम उत्ते।
इक्क कैद प्रदेस दी सांग सीने,
तेह भुक्ख पई दूसरी मारदी ए।
तीजी खेडदी अक्खियां विच्च पुतली,
नौवां वरेहां दे दसम दिलदार दी ए।
चौथे कड़क के प्या जल्लाद कहिन्दा,
मुट्ठ हत्थ दे विच्च तलवार दी ए।
करामात विखायो जां सीस द्यो,
बस्स गल्ल इह आखरी वार दी ए।
पंजवां नाल दे पंजां प्यार्यां दा,
जत्था कैद हो ग्या छुडौन वाला।
रब्ब बाझ प्रदेसियां बन्दयां दी,
दिस्से कोई ना भीड़ वंडौन वाला।
दूजी नुक्करे प्या जलाद आखे,
मती दास हुन होर न गल्ल होवे।
छेती दस्स जो आखरी इच्छ्या ई,
एसे थां हाज़र एसे पल होवे।
उहने आखया होर कोई इछया नहीं,
औकड़ आखरी मेरी इह हल्ल होवे।
मेरे सीस उत्ते जदों चले आरा,
मेरा मूंह गुर पिंजरे वल्ल होवे।
लुस लुस करन वाली सोहल देही अन्दर,
दन्दे आरी दे ज्युं ज्युं धस्सदे ने।
आशक गुरू दे रब्बी माशूक त्युं त्युं,
कर कर पाठ गुरबानी दा हस्सदे ने।
होर देग़ इक्क चुल्हे ते नज़र आई,
विच्च देही पई किसे दी जलदी ए।
सूं सूं करके लहू है सड़दा,
चिरड़ चिरड़ करके चरबी ढलदी ए।
एधर सीतल गुरबानी दे जोश अन्दर,
नैहर नूर दी नाड़ां च चल्लदी ए।
जदों हुसड़ परेमी नूं होन लग्गे,
पक्खा परी हवाड़ दी झल्लदी ए।
बुझ के एस शहीद दे सोग अन्दर,
केस अग्ग ने धूएं दे खोल्ह दित्ते।
साह घुट्ट्या ग्या हवाड़ दा भी,
फुट्ट फुट्ट के अत्थरू डोल्ह दित्ते।
ओड़क बैठ गए तेग़ दी छां हेठां,
सीखां तिखियां विच्च खलोन वाले।
दित्ता सीस ते नाले असीस दित्ती,
धन्न धन्न कुरबान इह होन वाले।
हाए ! लोथ पवित्त्र है पई कल्ली,
सिदकी लै चल्ले गड्डे ढोन वाले।
बैठे गुरू गोबिन्द सिंघ दूर प्यारे,
सिक्खी सिदक दे हार परोन वाले।
ऐसे ज़ुलम दी वेखके 'शरफ़' झाकी,
मेरा ख़ून सरीर दा सुक्क ग्या।
डर के तार्यां ने अक्खां मीट लईआं,
चन्न बद्दली दे हेठ लुक्क ग्या।
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