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Judai Shayari In Hindi जुदाई शायरी इन हिंदी Bicharna Shayari

बिछड़ने पर शायरी Bicharna Shayari जुदाई शायरी इन हिंदी Judai Shayari

लंबी है जुदाई तुम्हारी,
प्रेम किया है खता हमारी,

Judai Ka Gham Lambi Judai Shayari - Darde Mohabbat Darde Judai Shayari

विरह गीत

छोड़ आई मैं घर परिवार।
आ गई हूँ प्रीतम दरबार।

लंबी है जुदाई तुम्हारी,
प्रेम किया है खता हमारी,
हुए चारों ओर बंद द्वार।
आ गई हूँ प्रीतम दरबार।

बांध सामान बैठी कब से,
चले गए अब तारे नभ से,
तुम्ही हो मेरा घर संसार।
आ गई हूँ प्रीतम दरबार।

कैसी उलझन में हो प्यारे,
तेरे बिना हम बे सहारे,
कर रही तुम्हारा इंतजार।
आ गई हूँ प्रीतम दरबार।

पगड़ी की है इज्जत रोली,
बिना फेरे संग तेरे हो ली,
मेरे हाल पर कर उपकार।
आ गई हूँ प्रीतम दरबार।

बीत जाएगी नेह की बेला,
विरह में मेरा मन अकेला,
सह न पाऊँ मैं अत्याचार।
आ गई हूँ प्रीतम दरबार।

प्यार में हूँ प्रेम दीवानी,
जैसे मीरा बनी मस्तानी,
समझने लगे हो हमे भार।
आ गई हूँ प्रीतम दरबार।

मनसीरत की आँखे सूखी,
मैं पगली प्रणय की भूखी,
हो ना जाए जग में प्रचार।
आ गई हूँ प्रीतम दरबार।

छोड़ आई मैं घर परिवार।
आ गई हूँ प्रीतम दरबार।

सुखविंद्र सिंह मनसीरत 
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

जुदाई शायरी 2 लाइन - जुदाई का गम शायरी - प्यार से दूर जाने की शायरी

जुदाई तन मन खा रही
ग़ज़ल
तुम कहाँ पर हो मैं मरती जा रही।
हूँ अकेली बैठी मैं घबरा डरा रही।

याद आती रहती तुम आते नहीं,
छोड़ कर सब आई हूँ पछता रही।

हर शजर से प्यारी हैं यादें जुड़ी,
तेज चलती पवनें भी तड़फा रही।

रात भर मेघों ने बरसाया कहर,
आग सीने में बूँदे सुलगा रही।

प्यार में अरमानों की बोली लगी,
यार तेरी थाती मैं जुठला रही।

जान तेरी रग रग में मेरी बसे,
प्रेम भावों की लहरें टकरा रही।

नींद में सोया मनसीरत है उठा, 
ये जुदाई तन मन को है खा रही।

सुखविंद्र सिंह मनसीरत 
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

प्रेमिका से बिछड़ने की शायरी | Judai Shayari In Hindi जुदाई शायरी इन हिंदी

दिल टूटने का दर्द शायरी
हमारे दिल को यूँ नाशाद कर के
न जाओ ऐ सनम बर्बाद कर के

खुशी कितनी मिलेगी देखिए तो
किसी नाशाद का दिल शाद कर के

ये दिल क्या जान भी दे दें उसे हम
वो देखे तो कभी फरियाद कर के

न घट पायेगी उन कर्मोंं की ताबिश
गए हैं जो मिरे अजदाद कर के

जवाब उसको करारा ही मिलेगा
वो देखे तो कभी बेदाद करके

लगा कर दिल से तस्वीरों को उनकी
बहुत रोए उन्हें हम याद कर के

सुकूँ मिल जाएगा सय्याद तुझको
परिन्दे देख तो आज़ाद कर के

मिलेगा क्या फ़राज़ उसको बताओ
मिरे ग़म की बयाँ रुदाद कर के
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़
मुरादाबाद

Judai Shayari In Hindi ज़ख़्मे दिल जुदाई शायरी इन हिंदी

ख़ून पीकर जब ये ख़न्जर एक जैसे हो गए।
ज़ख़्मे दिल दोनों के दिलबर एक जैसे हो गए।
 
दर्द सब अश्कों में घुल कर एक जैसे हो गए।
शामे ग़म के सारे मंज़र एक जैसे हो गए।

रंग वो दिखलाए हैं अब के बरस बरसात ने।
ताल पोखर झील सागर एक जैसे हो गए।

उनके आने की ख़ुशी में देखते ही देखते।
फूल कलियाँ क़ल्बे मुज़तर एक जैसे हो गए।

आपकी यादों का सावन जब भी बरसा झूम कर
दिल का दरिया, धरती, अम्बर एक जैसे हो गए।

आपके जलवों से ले कर कुछ ह़सीं राअ़नाईयाँ।
चाँदनी शब माहो अख़्तर एक जैसे हो गए।

इस क़दर छलके तुम्हारी याद में कि आज फिर
जामो मीना चश्मो साग़र एक जैसे हो गए।

ढूँढने से भी नहीं मिलती वफ़ा इनमें फ़राज़
क़ल्बे इन्साँ और पत्थर एक जैसे हो गए।
सरफ़राज़ हुसैन
फ़राज़ पीपलसाना मुरादाबाद

अपनों से बिछड़ने की शायरी Judai Shayari In Hindi

ग़ज़ल
ये सुन कर भी हमें कुछ ग़म नहीं है।
हमारे दर्द का मरहम नहीं है।

हमारा ह़ाल पूछा है उन्होंने।
इ़नायत उन की यह भी कम नहीं है।

कमी यूँ तो नहीं कुछ ज़िन्दगी में।
तिरी पायल की बस छम-छम नहीं है।

अभी मत जाईए दामन छुड़ा कर।
अभी यह ज़िन्दगी बरहम नहीं है।

बहुत अम्बार हैं खुशियों के लेकिन।
तुम्हारा ग़म अभी भी कम नहीं है।

नज़र आता नहीं कोई भी ऐसा।
यहाँ जिस आदमी में ज़म नहीं है।

मैं ख़ुश क्यों हूँ यही ग़म है उन्हें बस।
फ़राज़ अपना उन्हें कुछ ग़म नहीं है।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़
मुरादाबाद

ज़ख़्मे दिल जुदाई शायरी इन हिंदी

जब सोचा कि मुस्काऊं मैं
ग़म मुझे घेर क्यों लेता है

गुल बटते हैं यूँ तो सब में
काटें मुझको क्यों देता है

जब-जब देखा सपना मैंने
न जाने क्यों नासूर हुआ

मेरे ख्वाबों का शीश-महल
इक पल में चकनाचूर हुआ

जब पन्ने उलटे यादों के
आँखें मिरी अश्क़वार हुई

दिल रोया मेरा ज़ार-ज़ार
दुनियां मेरी मिस्मार हुई

तब दिल बोला-मिरा मुझसे
ऐसे सपने ही क्यों संजोता है?

ऐसा मेरे साथ ही क्यों होता है
ऐसा मेरे साथ ही क्यों...

क़िस्मत जब ऐसी लिखनी थी
दिल से क्यों मुझे नवाज़ दिया

ऐसे फ़न का क्या करूँ बता
न सुर दिया न साज़ दिया

जिससे भी चाहा प्यार करूँ
मुंह मोड़ कर सब चले गये

बीच राह में छोड़ मुझे
सब नाते रिश्ते तोड़ गए

अब मैं तन्हा हूँ दिल तन्हा
और हरसू है तन्हाई सी

मैं भाग रहा हूँ जिससे
मालुम होती परछाई सी

औरों पर, अब क्या करूँ ए दिल
खुद पर मुझको विश्वास नहीं

दिल ख़ाली हो चला है मिरा
इसमें अब वो अहसास नहीं

इसलिए शायद अब ‘नज़र’ भी
अपनी क़िस्मत को रोता है।
ऐसा मेरे साथ ही क्यों होता है
नज़ीर नज़र
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