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सामाजिक मुद्दों पर शायरी | हिंदी शायरी लिखा हुआ Samajik Shayari

Samajik Muddon Per Shayari Hindi Mein

ग़ज़ल
इक दूजे से सब जलते हैं।
घात लगाके सब छलते हैं।।

जग में ऐसे लोग नहीं अब,
सच्चाई के पथ चलते हैं।

श्रम का फल होता सुखदाई,
दूर सभी इससे टलते हैं।

आसानी से काम सभी हों,
कृषि यंत्रों पर ये पलते हैं।

खेतों में है धूप कड़ी अब,
बैठे यह पंखा झलते हैं।

आज अनेकों लोग बहुत ही,
बैठे दोनों कर मलते हैं।

 खा-पीकर आनंद उठाते,
ऐसे लोग सदा ढलते हैं।

श्रम करना जिसने भी सीखा,
जीवन में वो ही फलते हैं।

कोख किराए पर बिकती अब,
जिसमें देखा शिशु पलते हैं।

भाग रहा गतिमान समय है,
साथ समय के सब ढलते हैं।

जीवन की आपाधापी में,
चिन्ताओं से तन गलते हैं।
ओम प्रकाश खरे
जौनपुर।२५-०३--२०२२
***

सामाजिक बुराइयों पर कविता Poetry On Social Issues In Hindi

शीर्षक: कलुषित समाज....
पैसों की होड़ हर तरफ लगी
खौफ़नाक मंजर है बड़ी बड़ी 
चारों ओर सिर्फ अंधकार है छाया
समाज को ग्रसने बड़ा तिमिर है आया

किसी को भी एक पल चैन नही
सिर्फ पैसों की हर पल भूख लगी
इंसान की नियत बदल रही हर घड़ी 
स्वार्थ ने अपनी सीमा है लांघी 

समाज का बंटवारा होने लगा
झूठ का बोलबाला होने लगा
नेताओं का फिर से गुज़ारा होने लगा
केसरी-हिज़ाब का सहारा लेने लगा

देश को केसरी-हिज़ाब में मत बांटो
धर्म से पहले राष्ट्र तुम पहचानो 
तरक्की साथ में रहने से है
मिलजुल कर काम करने में है

इंसानियत की पहचान बनो
दुनिया के लिए एक मिसाल बनो
सबका लहू का रंग लाल ही तो है
धर्म का अर्थ इंसानियत ही तो है.....
 संध्या जाधव, हुबली कर्नाटक
***

Samajik Muddon Per Shayari Hindi Mein

Samajik Muddon Per Shayari Hindi Mein

Samajik Burai Par Shayari

ग़ज़ल

यूँ नगर को सजाया गया
झोंपड़ों को हटाया गया

पी लिया हंस ने शौक़ से
दूध पानी मिलाया गया

लोग हँसते हुए रो पड़े
स्वाँग ऐसा रचाया गया
काम आई न कोई दवा
रोग इतना बढ़ाया गया

फिर न गंगा कहीं वो मिली
फिर न मुझसे नहाया गया

मूल क़ायम रहा उम्र-भर
सूद कितना चुकाया गया
मधुवेश
***

समाज पर शायरी कटाक्ष सामाजिक बुराई शायरी

ग़ज़ल पेश है

जाने ऐसा क्या मिला था दाल में
हो गई ज़ाहिर मिलावट माल में

घर में चुस्ती गुम थी जिसकी चाल में
वो ही इतराता रहा चौपाल में

नींद, सपने, चैन जिसका खो गया
पूछना उससे न ‘हो किस हाल में’?

चार दानों की कशिश पर मर मिटा
वरना क्यों फंसता वो पंछी जाल में

वह दरीचों पर थी दस्तक दे रही
बूंदा बूंदी छम छमा कर ताल में

चाँद धरती पर उतर आया था तब 
देखा ‘देवी’ ने उसे जब थाल में
Devi nangrani
***

समाज पर शायरी Samajik Shayari

ये क्या हुआ?
देख कर दंग हूँ, मजहब के व्यापार को
या खुदाया, मुबारक इस संसार को
मैं हिंदू ,तूँ मुस्लिम, ये सिक्ख, वो ईसाई
लहू के टुकड़े टुकड़े,सब ने कर दिए रे भाई
देखा कतरे कतरे में,नफरत और तकरार को
या खुदाया ,मुबारक इस संसार को
माँ -बाप,बीबी-बच्चे, सबके भाई बहने
नफरत की बहती दरिया में,सब हैं सहमे-सहमे
कोई हवा न दो भँवर में, अब पतवार को
या खुदाया, मुबारक इस संसार को
वाहे गुरु, गॉड, ईश्वर-अल्ला, खुदा
किस चश्मे ने मालिक को, किया जुदा- जुदा
छिन्न-भिन्न कर दो,सियासी बाजार को
या खुदाया, मुबारक इस संसार को
प्रीतम कुमार झा
महुआ, वैशाली, बिहार
***

Ladkiyon Ke Shoshan Aur Atyachar Par Shayari

 बेटियों को तो वर्जनाएँ हैं __
नफरतों से भरी फ़िज़ाएँ हैं,
ज़हर आलूद ये घटाएँ हैं।

खुशबुएँ छिन गयी हैं जीवन से,
कितनी ज़हरीली ये हवाएँ हैं।

क़ातिलों को मिले सभी तमगे,
बेगुनाहों को सब सज़ाएं हैं।

बात करते हैं अम्न की लेकिन,
रक्तरंजित मगर कथाएँ हैं।

काम कोई नहीं युवाओं को,
इस लिए जुर्म है खताएं हैं।

अब कहीं मज़हबी न झगड़े हों,
हर घड़ी बस यही दुआएँ हैं।

 है ये इक्कीसवीं सदी नीलम,
बेटियों को तो वर्जनाएँ हैं।
डा० नीलिमा मिश्रा प्रयागराज
***

Samajik Mudde Par Motivational Shayari

रास की कलम से

घर में कैसे रहते छुपकर देखा है 
ठंडा चूल्हा जल न सका वो मंजर देखा है

आज बताना दुनिया में क्या ढूँढ सके 
आदम हव्वा मुझसे बेहतर देखा है

एक इबारत आज इबादत पढ़ न सके
 सूखे पत्तों पर वो अक्षर देखा है

 सन्नाटे को चीर निकलते झोंके हैं 
सन सन करते हमने अक्सर देखा है

जब धरती भूखी प्यासी रोज तड़पती 
रोता और सिसकता अंबर देखा है

कतरा कतरा करके जिनसे खून बहा
उन आँखों में ज़ब्त समंदर देखा है

'रास' बताए सारे जग को सच्चाई 
ऐब छिपाने ओढ़े चादर देखा है
***

सामाजिक मुद्दों पर शायरी

फिर नारा भाषण क्या होगा
जब बाप हो शाहरुख के जैसा।
आर्यन का आलम क्या होगा।।
हैं खून से लथपथ लखीमपुर।
फिर नारा भाषण क्या होगा।
उदय शंकर चौधरी नादान
युवा सशक्तिकरण संघ राष्ट्रीय महासचिव
9934775009
***

सामाजिक मुद्दों पर शायरी

दम मारो दम कुण्डलिया
बेटे श्री पकड़े गये, दम से लगा लगाव।
चैराहे पर बिक गयी, अब इज्जत बेभाव।।
 अब इज्जत बेभाव, चिलम ने क्या कर डाला।
लगा मौत का शौक, खान का अपना लाला।।
संस्कार को मात, मीत संग लम्बे लेटे।
दम मारो संगीत, लुट चुके ड्रग में बेटे।।
 डा.सत्येन्द्र शर्मा,पालमपुर, हिमाचल

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