Parveen Shakir Shayari
Ab Bhala Chhod Ke Ghar kya karte शाम के वक़्त सफ़र क्या-Parveen Shakir
परवीन शाकिर शायरी हिंदी में
अब भला छोड़ के घर क्या करते
शाम के वक़्त सफ़र क्या करते
शाम के वक़्त सफ़र क्या करते
Parveen Shakir Poetry In Hindi
तेरी मसरूफ़ियतें जानते हैं
अपने आने की ख़बर क्या करते
जब सितारे ही नहीं मिल पाए
ले के हम शम्स-ओ-क़मर क्या करते
वो मुसाफ़िर ही खुली धूप का था
साए फैला के शजर क्या करते
ख़ाक ही अव्वल ओ आख़िर ठहरी
कर के ज़र्रे को गुहर क्या करते
राय पहले से बना ली तू ने
दिल में अब हम तिरे घर क्या करते
इश्क़ ने सारे सलीक़े बख़्शे
हुस्न से कस्ब-ए-हुनर क्या करते
परवीन शाकिर
परवीन शाकिर की किताब 'माहे-तमाम' से ली गई
अपने आने की ख़बर क्या करते
जब सितारे ही नहीं मिल पाए
ले के हम शम्स-ओ-क़मर क्या करते
वो मुसाफ़िर ही खुली धूप का था
साए फैला के शजर क्या करते
ख़ाक ही अव्वल ओ आख़िर ठहरी
कर के ज़र्रे को गुहर क्या करते
राय पहले से बना ली तू ने
दिल में अब हम तिरे घर क्या करते
इश्क़ ने सारे सलीक़े बख़्शे
हुस्न से कस्ब-ए-हुनर क्या करते
परवीन शाकिर
परवीन शाकिर की किताब 'माहे-तमाम' से ली गई
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