देशभक्ति शायरी कविता
गोरा-बादल का बलिदान
धन्य भूमि है भारत तेरी, सबसे अलग पहचान है
तुमने वीर जने हैं कितने, हमको ये अभिमान है
तुमने वीर जने हैं कितने, हमको ये अभिमान है
वतन से मोहब्बत शायरी
वीरतापूर्ण शायरी
तेरी इज्जत की खातिर मां,सबकी जां कुर्बान है
है हमको ये फख्र ये मैया, हम तेरी संतान हैं
वीर वो धरती जहां अमर सिंह, रहते स्वाभिमान से
प्यार उन्हें था जान से बढ़कर, अपने वतन की शान से
काल चक्र ने कुचक्र चलाया, काली घटा घिर आयी
खिलजी की सेना से नौबत,आर-पार की आयी
जब देखा पापी खिलजी ने,पार कठिन है पाना
किया षड्यंत्र उसने धोखे से,कुंवर को किया निशाना
तब पद्मिनी मां ने बढ़कर, थाम लिया बागडोर
घोष हुआ धरती-अंबर में ,किया सबने था गौर
गोरा-बादल पूत थे सच्चे, रानी से किये कुछ वादा
सकुशल लायेंगे अपने कुंवर को,दृढ़ था उनका इरादा
मां पद्मिनी साथ चली,डोली संग चतुर कहार
मानो दुश्मन दलन को उद्यत, स्वयं कालिका तैयार
हुई लड़ाई ऐसी जैसा, देखा ना कोई जग में
बिजली बनकर टूट पड़े,दुश्मन के वो पग-पग में
जो ठाना था मन में सबने,आखिर पूर्ण हुआ वो
पर गोरा-बादल कब होते,दुश्मन से कभी काबू
प्रलय बने वो,काल बने वो,मच गया हाहाकार
दुश्मन सेना डरकर भागी,मच गयी चीख पुकार
तभी अचानक सबने मिलकर, घेर लिया बांकुरों को
जैसे गीदड़ घेर हैं लेते,कभी-कभी कुछ शेरों को
जबतक जान बची थी तन में, हाहाकार मचाये
शीश कट गये फिर भी,दोनों मस्तक नहीं झुकाये
वीर शिरोमणि कहलाये वो,अमर बने इतिहास में
नाम रहेगा हरदम उनका, हर सांसों की सांस में
प्रीतम कुमार झा
महुआ, वैशाली, बिहार
वीर वो धरती जहां अमर सिंह, रहते स्वाभिमान से
प्यार उन्हें था जान से बढ़कर, अपने वतन की शान से
काल चक्र ने कुचक्र चलाया, काली घटा घिर आयी
खिलजी की सेना से नौबत,आर-पार की आयी
जब देखा पापी खिलजी ने,पार कठिन है पाना
किया षड्यंत्र उसने धोखे से,कुंवर को किया निशाना
तब पद्मिनी मां ने बढ़कर, थाम लिया बागडोर
घोष हुआ धरती-अंबर में ,किया सबने था गौर
गोरा-बादल पूत थे सच्चे, रानी से किये कुछ वादा
सकुशल लायेंगे अपने कुंवर को,दृढ़ था उनका इरादा
मां पद्मिनी साथ चली,डोली संग चतुर कहार
मानो दुश्मन दलन को उद्यत, स्वयं कालिका तैयार
हुई लड़ाई ऐसी जैसा, देखा ना कोई जग में
बिजली बनकर टूट पड़े,दुश्मन के वो पग-पग में
जो ठाना था मन में सबने,आखिर पूर्ण हुआ वो
पर गोरा-बादल कब होते,दुश्मन से कभी काबू
प्रलय बने वो,काल बने वो,मच गया हाहाकार
दुश्मन सेना डरकर भागी,मच गयी चीख पुकार
तभी अचानक सबने मिलकर, घेर लिया बांकुरों को
जैसे गीदड़ घेर हैं लेते,कभी-कभी कुछ शेरों को
जबतक जान बची थी तन में, हाहाकार मचाये
शीश कट गये फिर भी,दोनों मस्तक नहीं झुकाये
वीर शिरोमणि कहलाये वो,अमर बने इतिहास में
नाम रहेगा हरदम उनका, हर सांसों की सांस में
प्रीतम कुमार झा
महुआ, वैशाली, बिहार
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