समाजिक बुराइयों पर शायरी
Samajik Shayari
तू पहले तो बदतर सभी हालात करे है,
उसपर तू मुहब्बत की बड़ी बात करे है।
लहज़े में बग़ावत की तभी आने लगी बू
छुप छुप के तू गैरों से मुलाकात करे है।
एहसास-ए-मसर्रत न कभी और की ज़ानिब,
रंगीन मगर अपने तू दिन रात करे है।
गायेगा भला क्या वो मुहब्बत के तराने,
जो सूद-ओ-जियाँ की ही सदा बात करे है।
पत्थर का तेरा दिल है ज़ुबाँ है तेरी कड़वी,
तू कौन सी सूरत से मुनाजात करे है।
वो शहर सज़ा दे न तुझे और करे क्या,
जिस शहर में हर दिन तू खुराफ़ात करे है।
भाते न कभी जिसको चिराग़ों के उजाले
वो शख़्स अँधेरों से सवालात करे है।
जानेगा जहां कैसे तेरे दिल में निहाँ क्या,
ज़ाहिर न कभी अपने तू जज़्बात करे है।
लड़वा के मज़ाहिब को मिले क्या तुझे काफ़िर
बदनाम सदा अपनी ही तू ज़ात करे है
राजेश कुमारी राज
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