Good Morning Image With Shayari
सुप्रभात संदेश
Good Morning Love Shayari
Good Evening Shayari
प्रेम और आस्था दृढ़ रहे
कतकी प्रणाम
कतकी प्रणाम
जल थल नभ की पूजा करके लौट रहे सब मन की ओर
स्वच्छ सन्देश सादगी सहेज पकड़ रहे जीवन की डोर
भेव भाव भूलकर जाति धर्म से ऊपर उठकर मिले सभी
बना रहे विश्वास आस्था स्थिर रहे मार सकें सब मन का चोर!
लता प्रासर
स्वच्छ सन्देश सादगी सहेज पकड़ रहे जीवन की डोर
भेव भाव भूलकर जाति धर्म से ऊपर उठकर मिले सभी
बना रहे विश्वास आस्था स्थिर रहे मार सकें सब मन का चोर!
लता प्रासर
अनुराधा नक्षत्र का स्वागत
कतकी प्रणाम
कतकी प्रणाम
तिमिर का गह्वर छोड़ आसमां की ओर चलो
तृष्णा लिप्सा वो चार दिन मेहमां सब छोड़ चलो
बहुत गुरूर है वक्त को मेरे आजमाने का
चलो खूब चलो बिना थके वक्त को पीछे छोड़ चलो!
लता प्रासर
तृष्णा लिप्सा वो चार दिन मेहमां सब छोड़ चलो
बहुत गुरूर है वक्त को मेरे आजमाने का
चलो खूब चलो बिना थके वक्त को पीछे छोड़ चलो!
लता प्रासर
अनुराधा नक्षत्र का स्वागत
कनकनी सुप्रभात
कनकनी सुप्रभात
कुछ खिलखिलाती हंसी कुछ मौन गीत
प्रेम का संगीत सजा देती हैैं है ना मेरे मीत
तुम खिलखिलाओ ताकि मैं मौन निहार सकूं
चेहरे का स्निग्ध प्रदीप्त तरंगें पाना है जीत!
लता प्रासर
प्रेम का संगीत सजा देती हैैं है ना मेरे मीत
तुम खिलखिलाओ ताकि मैं मौन निहार सकूं
चेहरे का स्निग्ध प्रदीप्त तरंगें पाना है जीत!
लता प्रासर
झुरझुराती कतकी हवाओं को प्रणाम
भाव भरी पोथियां जाने क्यों आंसू की लड़ियां पीरो जातीं हैं
लिखने वाले का दर्द पढ़ने वाले को अक्सर हीरो बना जातीं हैं
अश्क से उकेरे गए शब्द सतह पर शीतलता बिखेर जाते हैं
जैसे जैसे डूबते हैं इनकी गहराईयों में चित्त जीरो हो जाती हैं!
लता प्रासर
लिखने वाले का दर्द पढ़ने वाले को अक्सर हीरो बना जातीं हैं
अश्क से उकेरे गए शब्द सतह पर शीतलता बिखेर जाते हैं
जैसे जैसे डूबते हैं इनकी गहराईयों में चित्त जीरो हो जाती हैं!
लता प्रासर
जेठान से उठान कतकी नमस्कार
भूल गए हम वो भी करना जो करना बहुत जरुरी था
समय एक था वो भी जब सबसे जरुरी जी हुजूरी था
वक्त बदल गया देख रहे हैं यह मौसम कहता फिरता है
कल तक मर जाना या मार देना बहुत बड़ा बहादुरी था
भूल गए हम वो भी करना जो करना बहुत जरूरी था!
लता प्रासर
समय एक था वो भी जब सबसे जरुरी जी हुजूरी था
वक्त बदल गया देख रहे हैं यह मौसम कहता फिरता है
कल तक मर जाना या मार देना बहुत बड़ा बहादुरी था
भूल गए हम वो भी करना जो करना बहुत जरूरी था!
लता प्रासर
धान की झनझनाहट भरी सुबह का स्वागत
कतकी प्रणाम
उलझन के बाजार में एक सूत्र प्रेम का सुलझा दो
है बात बड़ी गंभीर इसे मानवता को समझा दो
जो फक्कड़ साधु और फकीर सा जीवन अपना जीते हैं
उन सबकी वाणी को समझ मन मंदिर में उलझा दो!
लता प्रासर
है बात बड़ी गंभीर इसे मानवता को समझा दो
जो फक्कड़ साधु और फकीर सा जीवन अपना जीते हैं
उन सबकी वाणी को समझ मन मंदिर में उलझा दो!
लता प्रासर
शहनाईयों की गूंज मुबारक
कतकी सुप्रभात
बिटिया की डोली सज गई है साजन द्वार सजाने को
ममतामई मां की आंखों में साहस भर दो बेटी विदा कराने को
नवजीवन नवद्वार पर बिटिया अपनों को रहे सम्हाले
बिटिया की हलचल खूब सताए बेबस किया रुलाने को!
लता प्रासर
बिटिया की डोली सज गई है साजन द्वार सजाने को
ममतामई मां की आंखों में साहस भर दो बेटी विदा कराने को
नवजीवन नवद्वार पर बिटिया अपनों को रहे सम्हाले
बिटिया की हलचल खूब सताए बेबस किया रुलाने को!
लता प्रासर
बज रही शहनाइयां सुन तो जरा
कतकी प्रणाम
लहरों का आना जाना सागर सा जीवन लगता है
उथल-पुथल हृदय में मेरे नागर सा जीवन लगता है
बड़ी मुश्किल है राज समझना वक्त के हेरा-फेरी का
उम्र बीतता जाता है और गागर सा जीवन लगता है!
लता प्रासर
लहरों का आना जाना सागर सा जीवन लगता है
उथल-पुथल हृदय में मेरे नागर सा जीवन लगता है
बड़ी मुश्किल है राज समझना वक्त के हेरा-फेरी का
उम्र बीतता जाता है और गागर सा जीवन लगता है!
लता प्रासर
कनकनाती हवाओं संग धूप का स्वागत
कतकी सुप्रभात
रेल की सीटियां दूर से आती रहीं
मन उसके साथ दूर दूर जाता रहा
सफर जिंदगी की कटती है यूं हीं
गांव और पगडंडियां बुलाती रहीं
शहर में मौन है धमा चौकड़ी
गांव गुलजार हो हंसता रहा
इसमें कोई तो आता जाता है
दूर बैठा अपनों को बुलाता रहा!
लता प्रासर
मन उसके साथ दूर दूर जाता रहा
सफर जिंदगी की कटती है यूं हीं
गांव और पगडंडियां बुलाती रहीं
शहर में मौन है धमा चौकड़ी
गांव गुलजार हो हंसता रहा
इसमें कोई तो आता जाता है
दूर बैठा अपनों को बुलाता रहा!
लता प्रासर
शहनाईयों से गूंजती कार्तिक पूर्णिमा का स्वागत
सुप्रभात
बंद आंखों से गीत ब्याह के सुन रही थी
आंख खुली तो सपना नहीं था भ्रम टूट गया
गीत बता रहा था मुझको पास आकर हौले-हौले
नैहर से बिटिया का नाता अब तो छूट गया
छलछला उठीं आंखें मेरी भी ना जाने क्यों
बिटिया को मेरी गोद से कोई जैसे लूट गया
पाल-पोसकर उसके आगे सपने खूब सजाए थे
बिटिया के संग संग प्यार हमारा भी अटूट गया!
लता प्रासर
आंख खुली तो सपना नहीं था भ्रम टूट गया
गीत बता रहा था मुझको पास आकर हौले-हौले
नैहर से बिटिया का नाता अब तो छूट गया
छलछला उठीं आंखें मेरी भी ना जाने क्यों
बिटिया को मेरी गोद से कोई जैसे लूट गया
पाल-पोसकर उसके आगे सपने खूब सजाए थे
बिटिया के संग संग प्यार हमारा भी अटूट गया!
लता प्रासर
अगहन मास का स्वागत शुभलगनी सुप्रभात
मंडप नीचे बैठी बिटिया दान हो गई आज
नैहर की हंसी किलकारी दान हो गई आज
पाला पोसा मन मसोसा फिर क्यों किया पराई
सारे रिश्ते नाते जन्म के दान हो गई आज!
लता प्रासर
नैहर की हंसी किलकारी दान हो गई आज
पाला पोसा मन मसोसा फिर क्यों किया पराई
सारे रिश्ते नाते जन्म के दान हो गई आज!
लता प्रासर
लग्न की धमाचौकड़ी मुबारक
अगहनी सुप्रभात
उंगलियां अनायास अपनों की ओर बढ़ती चली जाती है
कभी स्पर्श से कभी संघर्ष से कभी सहर्ष छू जाती है
सोच लीजिए जरा गंभीरता से अपना या पराया आप जो चाहे कहें
जिसनें मान लिया अपना वह कहां किसी से दूर जाती है!
लता प्रासर
कभी स्पर्श से कभी संघर्ष से कभी सहर्ष छू जाती है
सोच लीजिए जरा गंभीरता से अपना या पराया आप जो चाहे कहें
जिसनें मान लिया अपना वह कहां किसी से दूर जाती है!
लता प्रासर
ज्येष्ठा नक्षत्र का स्वागत
अलसाई सुबह का नमस्कार
कोहरे की चादर में लिपटी छुई-मुई से क्या पुछूं
धानी चुनर पर शबनम छाई उससे अब क्या पुछूं
तन चंगा मन धुंध धुंध सा बदली कैसी छाई है
सरदी की वर्दी बिन वह शरमाई क्यों क्या पुछूं!
लता प्रासर
धानी चुनर पर शबनम छाई उससे अब क्या पुछूं
तन चंगा मन धुंध धुंध सा बदली कैसी छाई है
सरदी की वर्दी बिन वह शरमाई क्यों क्या पुछूं!
लता प्रासर
रबी फसलों की राह देखती मिट्टी को प्रणाम
बेटा मैं किसान का
साया चाहिए शान का
डटा रहता हूं खेतों में
संघर्ष केवल अवधान का
लिए कटोरा धान का
चाहत है सम्मान का
मौसम की बेफिक्री में
घूंट पी रहे अपमान का
लता प्रासर
साया चाहिए शान का
डटा रहता हूं खेतों में
संघर्ष केवल अवधान का
लिए कटोरा धान का
चाहत है सम्मान का
मौसम की बेफिक्री में
घूंट पी रहे अपमान का
लता प्रासर
अवधान-ध्यान, मनोयोग
सुनहरी धूपिया नमस्कार
कुदरत के किस्से बदल दो
उनके सारे हिस्से बदल दो
बदल दो मौसम के मिजाज
कहो ऐसा कि गुस्से बदल दो
किसी का आसियाना
किसी का नहीं ठिकाना
कौन लेगा किसी का जिम्मा
आसन जमा हुआ सियाना!
लता प्रासर
उनके सारे हिस्से बदल दो
बदल दो मौसम के मिजाज
कहो ऐसा कि गुस्से बदल दो
किसी का आसियाना
किसी का नहीं ठिकाना
कौन लेगा किसी का जिम्मा
आसन जमा हुआ सियाना!
लता प्रासर
मूल नक्षत्र का स्वागत
अगहनी सुप्रभात
भुजा पग अविरल चले परवाह नहीं इसको कोई
प्रचंड वेदना से व्यथित मेरुदंड की कौन सुने
कौन सुने तन की व्यथा गाथा कोई कहती रहे
जगत मस्त था है रहेगा परवाह नहीं इसको कोई!
लता प्रासर
प्रचंड वेदना से व्यथित मेरुदंड की कौन सुने
कौन सुने तन की व्यथा गाथा कोई कहती रहे
जगत मस्त था है रहेगा परवाह नहीं इसको कोई!
लता प्रासर
गुनगुनी धूपिया नमस्कार
हौले हौले शीतकाल पैर जमाने लगा
हाला पाला लाला सैर पर जाने लगा
चाय की चुस्कियां गपशप करवा रही
हाथ पांव बंद बंद नजर आने लगा !
लता प्रासर
हाला पाला लाला सैर पर जाने लगा
चाय की चुस्कियां गपशप करवा रही
हाथ पांव बंद बंद नजर आने लगा !
लता प्रासर
किसानों को शत् शत् नमन
अगहनी सुप्रभात
कुछ फसल लहलहा रही कुछ है अभी खड़ी
कुछ कुटने पीटने को खलिहानों में है पड़ी
होरी घर घर जाग रहा फसल का उसमें राग भरा
मौसम से भिड़ता वह फिरता फिर भी है मुश्किल बड़ी
लता प्रासर
कुछ फसल लहलहा रही कुछ है अभी खड़ी
कुछ कुटने पीटने को खलिहानों में है पड़ी
होरी घर घर जाग रहा फसल का उसमें राग भरा
मौसम से भिड़ता वह फिरता फिर भी है मुश्किल बड़ी
लता प्रासर
शबनमी पगडंडियों पर आपका स्वागत
अगहनी सुप्रभात
ले कुदाल चल पड़ा आलू उखाड़ने वह
अब तक लगा रहा हंसिया धान काटने में वह
ठिठुरती उंगलियों से पौधों को सहलाता है
रात रातभर बिता रहा गेहूं को पटाने में वह
एक बार बस एकबार खेतों में उसके घूम लो
साथ साथ तुमलोग भी मिट्टी को जरा चूम लो
राजपथ की रौशनी अंधेरे को नहीं देखती
तप रही पसलियां वहां तापमान निर्धूम लो!
मगहिया दीदी
ले कुदाल चल पड़ा आलू उखाड़ने वह
अब तक लगा रहा हंसिया धान काटने में वह
ठिठुरती उंगलियों से पौधों को सहलाता है
रात रातभर बिता रहा गेहूं को पटाने में वह
एक बार बस एकबार खेतों में उसके घूम लो
साथ साथ तुमलोग भी मिट्टी को जरा चूम लो
राजपथ की रौशनी अंधेरे को नहीं देखती
तप रही पसलियां वहां तापमान निर्धूम लो!
मगहिया दीदी
लता प्रासर
निर्धूम-धूंआरहित
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