प्यार में तकरार और इनकार की शायरी
Taqrar Inkaar Gul O Gulzar Shayari
Pyar Mein Inakar Shayari
बे सबब बे बात पर तकरार भी करने लगे।
वो हमारे प्यार से इन्कार भी करने लगे।
Gulzar Shayari
तेरी फ़ुर्क़त में सुकूँ देती नहीं शय कोई भी।
तंग मुझको अब गुल ओ गुलज़ार भी करने लगे।
जिनका हर पैग़ाम होता था हिदायत के लिए।
गुफ़्तगू वो लोग अब बेकार भी करने लगे।
इस तरह उलझे हैं हम फ़िरक़ा परस्ती में यहाँ।
हम पे लआ़नत देखिए अग़यार भी करने लगे।
मुफ़लिसों पर तो अज़ल से तोहमतें हैं बेशुमार।
काम कुछ नाज़ेब अब ज़र्दार भी करने लगे।
ह़रकतों पर शक हुआ जब उनकी हमको दोस्तो।
मीठी-मीठी हम से वो गुफ़तार भी करने लगे।
क्यों न टूटे हौसला हर इक सुख़नवर का भला।
नाम ना ऐहलों के तुम दस्तार भी करने लगे।
झूठ उनका इस क़दर आया पसंद इनको फ़राज़।
हमसरी उनकी सभी अख़बार भी करने लगे।
Izhaar Shayari
अब तो सर इल्ज़ाम आना चाहिए उनके फ़राज़।
अब तो क़ातिल कत्ल का इज़हार भी करने लगे।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़
पीपलसाना मुरादाबाद
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