वक़्त और हालात शायरी | वक़्त और हालात स्टेटस
माहौल पर शायरी | समस्या पर शायरी
ग़ज़ल
नाज़ो अन्दाज़ क्या नज़ाकत तक।
उड़ गई सबके रुख़ की रंगत तक।
शादो शमशाद क्या सख़ाबत तक।
बन्द हैं घर में अब शराफ़त तक।
जिनकी जोरु जबर है ऐ लोगो।
उनको घर में नहीं है फुर्सत तक।
उसने देखा जो खाँसते मुझको।
उसने पूछी न मेरी ह़ालत तक।
है भरोसे पे राम के जनता।
कह रही है मियाँ अ़दालत तक।
शादियाँ हो रहीं मुसलसल पर।
करने आता न कोई दावत तक।
हो गए सूख कर मियाँ काँटा।
घर के पण्डित क्या यार ह़ज़रत तक।
पहले डरते न थे बुख़ारों से।
अब डराती है कुछ ह़रारत तक।
देश के मौजूदा हालात पर शायरी
जान कितनों की इस वबा ने ली।
बात सिमटी है यह सियासत तक।
कितने हमदर्द हैं ये दारोग़ा।
घुरकी देते हैं सिर्फ़ रिशवत तक।
बात कैसे करूँ नसीबन की।
रूठी रूठी है अब तो क़िस्मत तक।
कोई मेहमान घर नहीं आता।
उड़ गई घर का सारी बरकत तक।
शग़ल था ठिठठे मारना जिनका।
उनकी होती नहीं ज़ियारत तक।
बात छोटी फ़राज़ हो चाहे।
याद रहती है पर वो मुद्दत तक।
क्या बताएँ फ़राज़ हम तुमको।
घर में बनती है अब ह़जामत तक।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ मुरादाबाद
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