जुल्म के खिलाफ आवाज शायरी Julm Ke Khilaf Shayari Hindi Font
ये कौन लोग हैं?
---------------
ये कौन लोग हैं जो बस्तियां जलाते हैं?
हैं कौन लोग जो इंसां का खूँ बहाते हैं?
किसी के माँग का सिंदूर छीन लेते हैं
ज़ईफ़ आँखों का ये नूर छीन लेते हैं।
यतीम बच्चों की आहों से ये नहीं डरते
कि चीख़ों और कराहों से ये नहीं डरते।
ये जश्न लाशों के ढेरों पे भी मनाते हैं।
ये कौन लोग हैं जो बस्तियां जलाते हैं?
ख़ुदा ने सबको बस इंसान ही बनाया है
फिर इनपे किसलिए हैवानियत का साया है?
दरिंदगी से इन्हें इतनी क्यूँ मुहब्बत है?
ख़ुलूसो-अम्न की बातों से क्यूँ अदावत है?
ये वहशियों की तरह क़हक़हे लगाते हैं।
ये कौन लोग हैं जो बस्तियां जलाते हैं?
न इनके हाथों में हैवानियत का परचम दे
दरिंदगी का न इनको ख़ुदा तू दम-ख़म दे।
जहाँ से ज़ुल्म औ नफ़रत को तू मिटा यारब
भटक गए हैं इन्हें रास्ता दिखा यारब।
वतन पे लोग तो क़ुर्बान हो भी जाते हैं
कहाँ ये लोग कभी बस्तियां जलाते हैं।
वतन परस्तों का इनको तू रहनुमा कर दे
गले लगा लें ये सबको वो हौसला भर दे।
दिलों में इनके मुहब्बत की रोशनी भर दे
ख़ुदारा दूर ये नफ़रत की तीरगी कर दे।
परिंदे शाम ढले घर तो लौट आते हैं।
कहाँ ये लोग कभी बस्तियां जलाते हैं।
-----------------
अतिया नूर
0 Comments