प्यार में हिमाकत करने की शायरी : फिर हिमाकत की है - हरजीत सिंह मेहरा
फिर हिमाकत की है
विधा -- ग़ज़ल
फिर तेरी गलियों में आने की हिमाकत की है..
जो ना हो सके कुछ ऐसी.. रफ़ाक़त की है!
भूल जाऊंगा तुझे ख़ुद से किया था वादा..
आज ख़ुद उस वादे से मैंने अदावत की है!
खफा दिल के तराने..जो दफ्न तेरे दिल में..
उसी उल्फत को जगाने की.. शरारत की है!
नगमे तेरी मोहब्बत में, सजाए थे जो कभी..
उसे फिर तुझे सुनाने की..जुर्रत की है!
जफ़ा तेरे इश्क़ पे..जो की थी कभी जानम..
सदके उस कद्र की...आज मुरव्वत की है!
ख़ौफ नहीं अब ज़माने से..जो था कभी...
बेझिझक कहता हूं..हां बेइंतहा मोहब्बत की है!
हरजीत सिंह मेहरा
लुधियाना पंजाब।
85289-96698
शब्दार्थ :
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हिमाकत - बेवकूफी
रफाकत - मेलजोल
अदावत - शत्रुता
उल्फत - प्यार
जफ़ा -अत्याचार
मुरव्वत - लिहाज, इज्जत
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