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बुढ़ी औरत पर शायरी Budhapa Shayari Budhi Aurat Par Shayari

बुढ़ी औरत पर शायरी Budhapa Shayari Budhi Aurat Par Shayari

बुढ़ी औरत पर शायरी Budhapa Shayari Budhi Aurat Par Shayari

बुढ़ी औरत

अंग प्रत्यंग भंग है
मानसिक अपंग है
पथ कठिन है मगर
यही उसकी जंग है
नित्य नजरे ताक रही
सपनो में झांँक रही
झुर्रियाँ पड़े चेहरे पर
उम्र उसे समझा रही
देख रहे लोग उसे
पथ किनारे वो सो रही
किसी ने पूछा नही
किसी ने जाना नही
भावुक हो वो रो रही
अपनो ने छोड़ा उसको
उम्र के इस पड़ाव में
घर में बैठे बहु बेटे
माँ जो सड़क पे लेटे
जब से बहू घर आई है
बँटवारा संग लाई है
माँ बेटों में दूरी बढ़ी
मिलने में मजबूरी बढ़ी
पति की जब याद आती
अँसुवन से नहा जाती
भुखे पेट कराह रही
जीने की राह देख रही

सुधीर सिंह  आसनसोल

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