Kitab Shayari : Almari Mein Pari Kitab Kha Rahi Hai Dhul
आज हमें कोई भी जानकारी चाहिए होती है तो हम गूगल पर सर्च करते हैं। एक जमाना था जब हम इसके लिए किताबों को खोलते थे। फोन डायरेक्टरी भी एक किताब भी होती है, डिक्शनरी भी किताब होती है। लेकिन आज सारी किताबें मौन बैठी सारा तमाशा देख रही है।
किताब पर शायरी : अलमारी में पड़ी किताबें खा रही है धूल
किताब
अलमारी में पड़ी किताबें खा रही है धूल,
नहीं समझ पा रही है क्या हो गई भूल।
कल तक मिलता था लोगों को इनसे ज्ञान,
हर कोई करता था इनका कल तक बखान।
किताबों को अब नही कोई टटोल रहा है,
जिसे देखों गूगल इस्तेमाल कर रहा है।
पूछ रही है हम से ऐसी क्या बात हो गई,
क्यों हम शोकेस की शोपीस बनकर रह गई!
सुमित मानधना 'गौरव' सूरत, गुजरात
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