Ticker

6/recent/ticker-posts

Ishq e Haqiqi Shayari In Hindi | Ishq e Haqiqi Poetry In Hindi

सूफी रूहानी इश्क़ शायरी इश्क़-ए-हक़ीक़ी | Sufi Ruhani Ishq Shayari 

जिस ख्वाब में हो जाए दीदारे नबी हासिल
ऐ इश्क़ कभी हमको भी वो नींद सुला दे

Jis Khwaab Mein Ho Jaaye Deedaar e Nabi Hasil
Aye Ishq Kabhi Hamko Bhi Wo Neend Sula De

जिस दिन भी इश्क़-ए-हक़ीक़ी जान जाओगे
उस दिन आदाब-ए-फ़क़ीरी जान जाओगे

Jis Din Bhi Iskq Hawiwi Jaan Jaaoge
Use Din Aadab e Fakiri Jaan Jaaoge

बस जान गया मैं तिरी पहचान यही है
तू दिल में तो आता है समझ में नहीं आता

Bus Jaan Gaya Main Teri Pahchan Yahi Hai
Tu Dil Mein To Aata Hai Samajh Mein Nahin Aata


हक़ीक़ी इश्क इश्क़ एक मजाज़ी पहली मंज़िल है
चलो सू ए खुदा ऐ ज़ाहिदों कू ए बुतां हो कर।

Haqiqi Ishq Ki Ishq-e-Majazi Pahli Manzil Hai
chalo Su-e-Su-e-Khuda 
Aye Zahidon Ku-e-Ku-e-Butan Ho Kar

***

इश्क़-ए-हक़ीक़ी शायरी | Ishq e Haqiqi Shayari


तर-दामनी पे शैख़ हमारी न जाइयो
दामन निचोड़ दें तो फ़रिश्ते वज़ू करें

Tar Damini Pe Shekh Hamari Na Jaiyo Daman Nichod Den To Farishte Vaju Kare

तमाशा-ए-दैर-ओ-हरम देखते हैं
तुझे हर बहाने से हम देखते हैं

Tamasha e Dair o Haram Ham Dekhte Hain
Tujhe Har Bahane se Ham Dekhte Hain

है ग़लत गर गुमान में कुछ है
तुझ सिवा भी जहान में कुछ है

Hai Galat Gar Guman Mein Kuchh Hai
Tujh Siva Bhi Jahan Mein Kuchh Hai

दरिया से मौज मौज से दरिया जुदा नहीं
हम से जुदा नहीं है ख़ुदा और ख़ुदा से हम

Dariya Se Mauj Mauj Se Dariya Judaa Nahin
Humse Judaa Nahin Khuda aur Khuda Se Ham

तू ही ज़ाहिर है तू ही बातिन है
तू ही तू है तो मैं कहाँ तक हूँ

Tu Hi Zahir Hai Tu Hi Batin Hai
Tu Hi Tu Hai To Main Kahan Hun

सूफी इश्क शायरी | Sufi Ishq Shayari

तेरे क्या हुए सब से जुदा हो गए,
सूफी हो गए हम तुम खुदा हो गए।

Tere Kya Hue Sabse Judaa Ho Gaye
Sufi Ho Gaye Ham Tum Khuda Ho Gaye

Sufi Ishq Poetry In Hindi
ख़ुदाया आज़ाद करदे, मुझे ख़ुद अपना ही दीदार दे दे,
मदीना हक़ में करदे, सूफ़ियों वाला क़िरदार दे दे।

Khudaya Azad Kar De Mujhe Khud Apna Hi Didar De De
Madina Haq Mein Kar De Sufiyon Wala Kirdar De De

भगवा भी है रंग उसका सूफी भी,
इश्क की होती है ऐसी खूबी ही।

Bhagava Bhi Hai Rang Uska Sufi Bhi
Ishq Ki Hoti Hai Aisi Khubi Hi

उनकी वज़ाहत क्या लिखूँ, जो भी है बे-मिसाल है वो,
एक सूफ़ी का तसव्वुर, एक आशिक़ का ख़्याल है वो।

Unki Vajahat Kya Likhun Jo Bhi Hai Bemisal Hai Vah
Ek Sufi Ka Tasabbur Ek Aashiq Ka Khyal Hai Vah

जब कमान तेरे हाथों में हो फिर कैसा डर मुझे तीर से,
सचमुच मैं जानता हूँ तुम इश्क़ करती हो मुझ फ़क़ीर से।

Jab Kaman Tere Hathon Mein Ho phir kaisa Dar Mujhe Teer Se
Sachmuch Main Jaanta Hun Tum Ishq Karti Ho mujh Fakir Se

रूहानी इश्क शायरी

ज़ाहिर की आँख से न तमाशा करे कोई
हो देखना तो दीदा-ए-दिल वा करे कोई

Zahir Ki Aankh Se Na Tamasha Kare Koi
Ho Dekhna To Did e Dil Va Kare Koi

ज़े-हाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल दुराय नैनाँ बनाए बतियाँ
कि ताब-ए-हिज्राँ नदारम ऐ जाँ न लेहू काहे लगाए छतियाँ

Zehal e Miskeen Makun Tagafful Daudaye Naina Banae Batiyan
ki Taab e Hijra Nadaram Aye Jaan Na Lehu Kahe Lagaye Chhtiya

शबान-ए-हिज्राँ दराज़ चूँ ज़ुल्फ़ ओ रोज़-ए-वसलत चूं उम्र कोताह
सखी पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ

Shaban e Hjran Draaz Cun Zulf o Roz e Waslt Chun Umr Kotah
Sakhi Priya Ko Jo Main Na Dekhun To Kaise Katun Andheri Ratiyan

जग में आ कर इधर उधर देखा 
तू ही आया नज़र जिधर देखा

Jag Mein Aakar Idhar Udhar Dekha
Tu Hi Aaya Nazar Jidhar Dekha

जान से हो गए बदन ख़ाली
जिस तरफ़ तू ने आँख भर देखा

Jaan Se Ho Gaye Badan Khali
Jis Taraf Tune Aankh Bhar Dekha

अर्ज़-ओ-समा कहाँ तिरी वुसअत को पा सके
मेरा ही दिल है वो कि जहाँ तू समा सके

Arz o Sama Kahan Teri Wusat Ko Pa Sake
Mera Hi Dil Hai Vah Ki Jahan Tu Sama Sake

ख़बर-ए-तहय्युर-ए-इश्क़ सुन न जुनूँ रहा न बरी रही
न तो तू रहा न तो मैं रहा जो रही सो बे-ख़बरी रही

Khabr e Tahaur e Ishq Sun Na Junoon Raha Na Bari Rahi
Na To Tu Raha Na To Main Raha Jo Rahi So Bekhabri Rahi

हर तमन्ना दिल से रुख़्सत हो गई
अब तो आ जा अब तो ख़ल्वत हो गई

Har Tamanna Dil Se Rukhsat Ho Gai
Ab To Aaja Ab To Khilwar Ho Gai

कह सके कौन कि ये जल्वागरी किस की है
पर्दा छोड़ा है वो उस ने कि उठाए न बने

Kah Sake Kaun Ki Ye Jalvagari Kiski Hai
Parda Chhoda Hai Vah Usne Ki Uthaie Na Bane

फ़रेब-ए-जल्वा कहाँ तक ब-रू-ए-कार रहे
नक़ाब उठाओ कि कुछ दिन ज़रा बहार रहे

Fareb e Jalva Kahan Tak Ba-Ru-e Kar Rahe
Naqab Uthao Ki Kuchh Din Zara Bahar Rahe

लाया है मेरा शौक़ मुझे पर्दे से बाहर
मैं वर्ना वही ख़ल्वती-ए-राज़-ए-निहाँ हूँ

था मुस्तआर हुस्न से उस के जो नूर था
ख़ुर्शीद में भी उस ही का ज़र्रा ज़ुहूर था

दिल-ए-हर-क़तरा है साज़-ए-अनल-बहर
हम उस के हैं हमारा पूछना क्या

करें हम किस की पूजा और चढ़ाएँ किस को चंदन हम
सनम हम दैर हम बुत-ख़ाना हम बुत हम बरहमन हम

हैं वो सूफ़ी जो कभी नाला-ए-नाक़ूस सुना
वज्द करने लगे हम दिल का अजब हाल हुआ

Post a Comment

0 Comments