Intezaar Shayari In Hindi For Girlfriend | Intezar Love Shayari
इंतज़ार शायरी हिंदी फॉर बॉयफ्रेंड | Intezaar Shayari In Hindi For Girlfriend
ग़ज़ल
इतना मज़ा कहाँ है किसी कारोवार में।
आता है लुत्फ़ जितना तेरे इंतजार में।
आता है लुत्फ़ जितना तेरे इंतजार में।
अन्जान जान बूझ के बनते हो आप जब।
लगती है आग और दिल - ए - बेक़रार में।
गाता है यह भी गीत तुम्हारे ही ऐ सनम।
दिल भी नहीं है मेरा मेरे इख़्तियार में।
दिल भी नहीं है मेरा मेरे इख़्तियार में।
अब और कोई ज़ख़्म मैं सह पाऊँ दोस्तो।
इतनी जगह कहाँ है दिल -ए - दाग़दार में।
कमरे में उसने आईना अपने सजा लिया।
तस्वीर जब से देखी मिरी इश्तिहार में।
फ़ुर्सत कहाँ है पूछें जो इक दूसरे का ह़ाल।
उलझे हुए हैं लोग ग़म - ए - रोज़गार में।
तूफ़ान की ख़ता है न मौजों का मामला।
डूबी है अपनी कौम फ़क़त इन्तिशार में।
मालीकी हरकतों का नतीजा है यह फ़राज़।
उजड़ा हुआ चमन है जो फ़स्ल-ए-बहार में।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ मुरादाबाद उत्तर प्रदेश
प्यार के आने का इंतजार शायरी | इंतजार शायरी | Intezar Shayari
न क़रार मेरे दिल को न सुकून है जिगर को।
तिरा इन्तिज़ार है बस मिरी जान इस नज़र को।
बिना तेरे एक पल भी हुआ जीना मेरा मुश्किल।
इसी जुस्तजू में हूँ बस करूँ कैसे तुझको ह़ासिल।
मिले तू जो मुझको जानाँ मिले चैन कुछ जिगर को।
तिरा इन्तिज़ार है बस मिरी जान इस नज़र को।
तिरी फ़ुर्क़तों के साए मुझे डस रहे हैं हर दम।
कभी आ के कुछ ख़बर ले मिरे यार मेरे हम दम।
मैं कहाँ तलक निहारूँ बता तेरी रहगुज़र को।
तिरा इन्तिज़ार है बस मिरी जान इस नज़र को।
करूँ कैसे मैं गुज़ारा बिना तेरे यह बता दे।
कभी ख्वाब में ही आ कर मुझे तू झलक दिखा दे।
मैं तरस रहा हूँ दिलबर तिरी दीद की ख़बर को।
तिरा इन्तिज़ार है बस मिरी जान इस नज़र को।
न क़रार मेरे दिल को न सुकून है जिगर को।
तिरा इन्तिज़ार है बस मिरी जान इस नज़र को।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ पीपलसाना मुरादाबाद
आने का इंतजार शायरी | Aane Ka Intezaar Shayari
ग़ज़ल
भुला सके तो तुझे ह़क़ है तू भुला मुझको।
हुनर भुलाने का ऐसाही कुछ बता मुझको।
भुला सके तो तुझे ह़क़ है तू भुला मुझको।
हुनर भुलाने का ऐसाही कुछ बता मुझको।
नज़र को चैन मिले क़ल्ब को भी हो राह़त।
ज़रा सी देर को आ कर गले लगा मुझको।
ज़रा सी देर को आ कर गले लगा मुझको।
बुझा दे आ के मेरी जान तिश्नगी दिल की।
कभी तो जाम निगाहों केकरअ़ता मुझको।
उलझ न ऐसे मेरे वास्ते ज़माने से।
मैं ख़ाक हूँ तेरे रस्ते की तू हटा मुझको।
नज़र मिला के नज़र से गिरा दिया तू ने।
ज़रा सी बात ही करदेगी यह फ़ना मुझको।
जो ग़मगुसार था उसने ही फेर लीं नज़रें।
लगेगी कैसे किसी की भला दुआ़ मुझको।
फ़राज़ हाथ उठाते हैं चारागर मेरे।
सुकून देती नहीं अब कोई दवा मुझको।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ मुरादाबाद यू.पी.
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