Sach Ka Gunah Shayari in Hindi सच का गुनाह शायरी इन हिंदी
सच का गुनाह शायरी | Sach Ka Gunah Shayari in Hindi
सच का गुनाह
सच कितना होता है कड़वा
जिसने चखा उसने पाई सजा
शूली पर सजा या खाई गोली
पर खींच दी पत्थर पर निशानी।
हम फैलातें हैं अपनी झोलियां
ऑंसुओंसे भर खींचते टोलियॉ
क्यों नहीं करते गुमान अपनी भुजाओं पर
धरा उठा ले कंधों पर अकिंचन पात्र का
मौत भी मेहरबान हो या रुखसत करें,
तम के पर्दे को चीर कर पुंज जले सदा
खूबसूरती का नजारा दिखे प्रसून पर,
अपने गुनाहों की सजा मिलेधूल पर
अपने बेदर्द दिल को रूबरू करें सदा
शहनाइयों के स्वर पर लुटे हम सदा।
सच को सच मान कर ही हम जियें
साथ चलने की गुनाह करें सदा।
_____डॉ सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार
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