कुछ पुरानी यादें शायरी | घर की याद शायरी इन हिंदी
मिट्टी की सोंधी - सी खुशबू
बैठा हूं दूर परदेश में तन्हा,
मात-पिता की याद सताती है
अपनी जन्मभूमि मातृभूमि की,
याद वतन की आ जाती है!
वह खेत-खलिहान, चौंक-चौबारा,
गांव की छवि नैनों में उभर आती है
लहराते खेतों पर चलती निर्मल पुरवाई,
याद मिट्टी की सोंधी-सी ख़ुशबू आ जाती है!
जीविका ने आज, अपना देश छुड़ाया,
जिगरी यारों की याद, आ जाती है
उन महफिलों की खट्टी मीठी बातें,
याद उनकी शरारतों की आ जाती है!
वो सुबह की अज़ान, गुरुद्वारे की वाणी,
याद मंदिरों की घंटी आ जाती है
खेतों की मिट्टी को जोतते वो हल,
याद, मिट्टी से उठती सोंधी-सी ख़ुशबू आ जाती है!
वो मां का प्यार, बड़े भाई की पुचकार,
याद, पापा की फटकार आ जाती है
वो बहनों का दुलार, राखी का त्यौहार,
दशहरा-दिवाली की, याद आ जाती है।
यूं तो डॉलर बहुत कमातें हैं हम, यहां,
पर, अपनेपन की कमी, खल जाती है
नहीं सानी अपने वतन सा और कोई,
याद स्वदेशी मिट्टी की सोंधी-सी ख़ुशबू, आ जाती है!!
हरजीत सिंह मेहरा
लुधियाना पंजाब।
85289-96698
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