गांव की बचपन की यादें गुजरे वक्त पर शायरी : सपने ढूंढ रहा हूं
Bachpan Ki Yaadein Shayari in Hindi
सपने ढूंढ रहा हूं
यारों बड़ा बेचैन हूं मैं आजकल
खोए हुए वो नगीने ढूंढ रहा हूं,
जो बचपन में देखा करते थे
वो भूले बिसरे "सपने ढूंढ रहा हूं"!
कई मुद्दों पर होती थी चर्चा
उन विचारों की मंजिल ढूंढ रहा हूं,
हर शाम, रौशन होती थी जो, जुस्तजू ए शमा
उन जज्बातों की महफ़िल ढूंढ रहा हूं!
चाहत होती थी जो, रुतबा पाने की, दिल में
उन हौसलों की मजलिस ढूंढ रहा हूं,
साथ चलती थी, जिन की सदाएं, दुआ बनके
उन फरिश्तों की वो नवाज़िश ढूंढ रहा हूं!
भरते थे, उड़ान बुलंदियों की जो फलक पर
ऐसे खयालों की परवाज़ ढूंढ रहा हूं,
ज़िगर रखते थे, कुछ कर गुजरने का
संघर्ष का वो अंदाज़ ढूंढ रहा हूं!
बुनते थे लिबास सुनहरे भविष्य का, तब
ताने-बाने की वो डोर ढूंढ रहा हूं,
एक दूजे कोमात देने की कोशिश
प्रतिस्पर्धा का वो शोर ढूंढ रहा हूं!
वो जिद्द सारा जहान जीत लेने की
उस संकल्प का आधार ढूंढ रहा हूं,
अनजान डगर अनजान उद्देश्य पाने का
फिर वही बचपन वाला, संसार ढूंढ रहा हूं!!
जीवन की दौड़ में, कैसे भटक गई राहें
पीछे छूट गया, वो सफ़र ढूंढ रहा हूं,
टूट गए कैसे सुनहरे मंसूबे सिद्धांतों के
उस ग़फ़लत का, आज असर ढूंढ रहा हूं!
मुट्ठी से रेत की तरह, फिसल गया वक्त क्यों
नाकामी का वह कारण ढूंढ रहा हूं,
चट्टान की तरह अडिग कंधे झुक गए, कैसे
मुफलिसी का आज साधन ढूंढ रहा हूं!
बिखर गया कारवां, जोशीले क़दमों का, कहां
वो बिछड़े यार अपने ढूंढ रहा हूं,
नामुमकिन है ऐसा होना पर फ़िर भी
वो भूले बिसरे "सपने ढूंढ रहा हूं"!!
हरजीत सिंह मेहरा,
मकान नंबर 179,
ज्योति मॉडल स्कूल वाली गली,
गगनदीप कॉलोनी, भटियां बेट,
लुधियाना, पंजाब।
फोन नंबर- 85289-96698
शब्दार्थ :
जुस्तजू- तलाश मजलिस सभा
नवाजिश- कृपा फलक- आसमान
गफलत- बेपरवाही मुफलिसी- गरीबी, मायूसी
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