हँसता-गाता मेरा गाँव : मेरा गाँव शायरी - Mera Gaon Shayari Poetry in Hindi
मेरा गांव कविता और शायरी
मेरा गाँव
ख़ुशी के नन्हे-नन्हे पांव
चांदनी रात में चलती नांव
यहां पेड़ों की ठंडी छांव
कि हँसता-गाता मेरा गाँव।
आम के पेड़ों की भरमार
कि महुआ,पीपल खड़े क़तार
कहीं अमरूद सफ़ेदा, नीम
कि झूला झूलें राम-रहीम
मुसाफ़िर धूप से जब थक जाएँ
तो पेड़ों के नीचे सो जाएँ
ये बूढ़ा बरगद ठंडी छाँव
कि हंसता-गाता मेरा गांव।
न मोटर-गाड़ी की आवाज़, धुंए ना चिमनी का है राज
कुँए का ठंडा-ठंडा नीर, पियो तो मिट जाए सब पीर
कि जब मुस्काती आती भोर, तो पँछी गा-गा करते शोर
कोयलिया कुहु-कुहु कागा काँव
कि हँसता-गाता मेरा गांव।
कि जब सावन की पड़े फुहार
पपिहरा पिहु-पिहु करे पुकार
चुनरिया धानी ओढ़े खेत, कि चम-चम चमके माटी रेत
हो खेत और रखवाली की बात, तो बाबा जागें सारी रात
जो काँपें थर-थर जले अलाव
कि हंसता-गाता मेरा गांव
धरा के आभूषण हैं पेड़, न करिए इनको ऐसे ढेर
बचाएँ धरती माँ की जान, लगाएं पेड़ बढाएं शान
धुँए के बादल ये छँट जाएँ, कि मिलकर ऐसा करें उपाय
लगाएँ क्यूँ जीवन को दांव
कि हँसने दें अपना ये गांव।
अतिया नूर
प्रयागराज
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